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अमितगतिकृतः श्रावकाचारः
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भ्यासापहारः परमन्त्रभेदो मिथ्योपदेशः परकूटलेखः । प्रकाशना गुह्यविचेष्टितानां पञ्चातिचाराः कथिता द्वितीये ॥ ४ व्यवहारः कृत्रिमजः स्तेननियोगस्तदाहृतादानम् । ते मानवपरीत्यं विरुद्धराज्यव्यतिक्रमणम् ॥ ५ आत्तानुपात्तत्वरिकाङ्गसङ्गावनङ्गसङ्गो मदनातिसङ्गः । परोपयामस्य विधानमेते पञ्चातिचारा गदिताश्चतुर्थे ।। ६ क्षेत्रवास्तुधनधान्यहिरण्यस्वर्णकर्मकरकुप्यकसंख्याः । योऽतिलपति परिग्रहलोलस्तस्य पञ्चकमवाचि मलानाम् ॥ ७ स्मृत्यन्तरपरिकल्पनमधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमाः प्रोक्ताः। क्षेत्रवृद्धिः प्राज्ञैरतिचाराः पञ्च तद्विरते: ।।८। आनयनयुज्ययोजनपुद्गलजल्पनशरीरसज्ञाख्याः ।
अपराधा: पञ्च मता देशव्रतगोचरा: सद्भिः ।। ९ असमीक्षितकारित्वं प्राहुट्टैगोपभोगनरर्थ्यम् । कन्दर्प कौत्कुच्यं मौखर्यमनर्थदण्डस्य ।। १० का अपहरण करनेवाला वचन कहना, परके गुप्तमंत्रका भद करना, मिथ्या उपदेश देना, परको ठगने के लिए कूटलेख करना अर्थात् जाली दस्तावेज आदि बनाना और दूसरेकी गुप्त या एकान्तम की गई चेष्टाओंका प्रकाशन करना ये पाँच अतीचार दूसरे अणुव्रतके कहे गये हैं ।। ४।। अब तीसरे अचौर्याणुव्रतके अतीचार कहते हैं-कृत्रिम व्यवहार करना, अर्थात् असली वस्तुमें नकली मिलाकर बेचना,स्तेन-नियोग करना, अर्थात् चोरको चोरी करनेम लगाना, चोरीसे लाये गये द्रव्यको लेना, मान वैपरीत्य करना, अर्थात् बडे बाँटोंसे लेना और छोटे बांटोंसे देना और राज्य नियमोंका उल्लंघन करना, ये पाँच अतोचार अचौर्याणुव्रतके है ।।५।। अब चौथे ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतीचार कहते हैं-दूसरेकी गहीता या अगहीत व्यभिचारिणी स्त्रीके अंगके साथ संगम करना,अनंग-क्रीडा करना, कामसेवनका तीव्र भाव रखना और दूसरेके विवाहका विधान करना, ये पाँच अतीचार चौथ अणुव्रतके कहे गये हैं।६।। अब पाँचवें परिग्रहपरिमाणवतके अतीचार कहते है-क्षेत्र,वास्तु, धन-धान्य, हिरण्य-सुवर्ण,दासी-दास आदि नौकर और कुप्य-भाण्डकी ग्रहण की गई संख्याका जो परिग्रह-लोभी पुरुष उल्लंघन करता है, उसके ये पांच अतीचार कहे गये हैं।७॥
अब प्रथम दिव्रत गणव्रतके अतीचार कहते है-ग्रहण की गई क्षेत्र-मर्यादाका भल जाना, ऊर्ध्वगमनकी मर्यादाका उल्लंघन करना, अधोगमनको मर्यादा का उल्लंघन करना, तिर्यग्गमनकी मर्यादाका उल्लंघन करना, और क्षेत्रको मर्यादा बढा लेना, ये पाँच अतीचार दिग्विरति गुणवतके प्राज्ञ पुरुषों ने कहे है ।।८।। अब दूसरे देशवत गुणवतके अतीचार कहते है-देशकी गृहीत मर्यादाके बाहरसे किसी पुरुषको या वस्तुको बुलाना, मर्यादाके बाहिर भेजना, मर्यादाके बाहिर लोष्ठ आदि फेंककर संकेत करना, मर्यादाके बाहिर अवस्थित पुरुषके साथ बोलता और मर्यादाके बाहिर शरीर का संकेत कर कार्य कराना, ये पाँच देशवतके अतीचार सन्तपुरुषोंके द्वारा माने गये है ॥९॥ अब तीसरे अनर्थण्डविरति गुणवतके अतीचार कहते हैं-विना देखे-सोचे कार्य करना, अनर्थक भोग-उपभोग की वस्तुओंका संग्रह करना, हास्य मिश्रित अयोग्य वचन बोलना, कायकी कुचेष्टा करना और निरर्थक बकवाद करना, ये अनर्थदण्डव्रतके पाँच अतीचार हैं ॥१०॥ अब प्रथम सामायिक शिक्षाव्रत के अतीचार कहते हैं-मन, वचन और काय इन तीनों योगोंका खोटा उपयोग
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