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श्रावकाचार-संग्रह
एकाक्षा: स्थावरा जीवाः पञ्चधा परिकीर्तिताः । पृथिवी सलिलं तेजो मारुतश्च वनस्पतिः ॥ ८ भेदास्तत्र त्रयः पृथ्व्याः कायकायिकतद्भवाः । निर्मुक्तस्वीकृतागामिरूपा एवं परेष्वपि ।। ९ मता द्वित्रिचतुःपञ्चहृषीकास्त्र सकायिकाः । पञ्चाक्षा द्विविधास्तत्र संज्ञ्य संज्ञिविकल्पतः ।। १० सङ्केतदेशनाला ग्राहिणः सञ्ज्ञिनो मताः । प्रवृत्तमानसप्राणा विपरीतास्त्वसंज्ञिनः ॥ ११ स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षुः श्रोत्रमतीन्द्रियम् । तस्य स्पर्शरसो गन्धो रूपं शब्दश्च गोचरः ।। १२ गण्डूपदजलौकाव्यकृमिशङ्खन्द्रगोपकाः । गदिता विविधाकारा द्विहृषीकाः शरीरिणः ।। १३ यूकापिपीलिका लिक्षाकुन्यु मत्कुणवृश्चिकम् । त्रिहृषीकं मतं प्राज्ञविचित्राकारसंयुतम् ॥ १४ पतङ्गमक्षिकादंशमशका भ्रमरादयः । चतुरक्षा बिबोद्धव्या विबुद्ध जिनशासनः ।। १५ तिर्यग्योनिभवाः शेषाः श्वाभ्रमानवनाकिनः । विभिन्ना विविधे मेंदः स्वीकृतेन्द्रियपञ्चकाः ॥ १६ हृषीकपञ्चकं भाषाकायस्वान्तबलत्रिकम् । आयुरुछ्वास निश्वासद्वन्द्वं प्राणा दशोदिताः ॥ १७ शरीराक्षायुरुच्छ्वासा भाषिता निखिलेष्वपि । विकलासंज्ञिनां वाणी पूर्णानां संज्ञिनां मनः ॥ १८
यथाक्रमसे चार, पाँच और छह पर्याप्तियाँ जानना चाहिये ||७|| भावार्थ - एकेन्द्रिय जीवके आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियाँ होती है । द्वीन्द्रियसे लगाकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तकके विकलेन्द्रिय जीवके उक्त चार और वचन ये पाँच पर्याप्तियाँ होती है और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके मन-सहित शेष सब अर्थात् छह पर्याप्तियाँ होती हैं । एकेन्द्रिय स्थावर जीव पाँच प्रकारके कहे गये है- पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ||८|| इनमें से पृथिवीके तीन भेद है - पृथिवी काय, पृथिवीकायिक और पृथिवीजीव । एकेन्द्रिय पृथ्वीका यिक जीवके द्वारा छोडा गया शरीर पृथिवीकाय कहलाता हैं । पृथिवीजीवके द्वारा धारण किया हुआ शरीर पृथिवीकायिक कहलाता हैं और जो एकेन्द्रिय जीव आगामी समय में पृथिवोकायिक होने वाला है, ऐसा विग्रहगति वाला अन्तरालवर्ती जीव पृथिवी जीब कहलाता हैं । इसी प्रकारसे जल आदि शेष चार प्रकार के एकेन्द्रिय जीवोंके भी तीन-तीन भेद जानना चाहिये ||९||
त्रसकायिक जीव चार प्रकारके माने गये हैं- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियजीव । इनमें पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञीके भेंदसे दो प्रकारके जानना चाहिये ||१०|| जो जीव शिक्षा, उपदेश, आलाप (शब्द) के ग्रहण करनेवाले हैं, जिनके मनप्राण पाया जाता है, वे संज्ञी कहलाते है | इनसे विपरीत जीवोंको असंज्ञी जानना चाहिये ॥ ११ ॥ इन्द्रियाँ पाँच होती हैं- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र । इनका विषय क्रमसे स्पर्श, रस. गन्ध, रूप और शब्द हैं ॥१२॥ गिंडोला, जौंक, कौंडी, कृमि, शंख और इन्द्रगोप आदि नाना आकार वाले द्वीन्द्रिय जीव कहे गये हैं | | १३ | | जूं, कीडी, लीख, कुन्थु, खटमल, बिच्छू आदि विचित्र आकारोंसे संयुक्त त्रीन्द्रियजीव ज्ञानियोंने कहे है ॥ ४ ॥ पतंग, मक्खी, डाँस, मच्छर और भौंरा आदि चतुरिन्द्रिय जीव जिनशासनके जानकारों द्वारा ज्ञातव्य हैं ॥ १५ ॥ उपर्युक्त जीवोंके सिवाय शेष तिर्यग्योनिके अनेक भेदवाले जीव तथा नारकी, मनुष्य और देव ये सभी पंचेन्द्रिय जीव जानना चाहिये ।। १६ ।। पाँच इन्द्रियाँ, भाषाबल, कायबल ये तीन बल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये दो इस प्रकार दश प्राण कहे गये है ॥ १७॥ शरीर, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण सभी एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके होते है । विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके वाणी ( वचन ).
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