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चारित्रसार-गतश्रावकाचार
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बन्धः । दण्डकशावेत्रादिभिः प्राणिनामभिघातो वधः। कर्णनासिकादीनामवयवानामपनयनं छेदः । न्यायावनपेताद्धारादतिरिक्तस्य भारस्य वाहनमतिलोभाद् गवादीनामतिमारारोपणम् । तेषां गवादीनां कुतश्चित्कारणात् क्षुत्पिपासाबाधोत्पादनमन्नपाननिरोध इति।।
स्नेहस्य मोहस्य द्वषस्य वोद्रेकाद्यदसत्याभिधानं ततो निवृत्तादरो गृहीति द्वितीयमणुव्रतम् । तस्य व्रतस्य पञ्चातिकमा भवन्ति मिथ्योपदेशः रहोऽभ्याख्यानं कूष्टलेखक्रियान्यासापहारः साकारमन्त्रभेदश्चेति । तत्राभ्युदयनिःश्रेयसार्थेषु क्रियाविशेषेषु अन्यस्यान्यथा प्रवर्तनमभिसन्धानं वा मिथ्योपदेशः । स्त्रीपुरुषाभ्यामेकान्तेऽनुष्ठितस्य क्रियाविशेषस्य प्रकाशन रहोऽभ्याख्यानम् । अन्येनानक्तं यत्किञ्चित्परप्रयोगवशादेवं तेनोक्तमनुष्ठितमिति वञ्चनानिमित्तं लेखनं कूटलेखक्रिया। हिरण्यादेवव्यस्य निक्षेप्तुधिस्मृतसंख्यस्य अल्पसंख्यानमावदानस्य एवं'इत्यनुज्ञावचनं न्यासापहारः । अर्थप्रकरणाङ्गविकारभ्रूक्षेपादिभिः पराकूतमुपलभ्य यदाविष्करणमसूयादिनिमित्तं तत्साकारमन्त्रभेद इति।
अन्यपीडाकरं पार्थिवादिमयादवशपरित्यक्तं वा निहितं पतितं विस्मृतं वा यवदत्तं ततो निवृत्तादरः श्रावक इति ततीयमणुव्रतम् । अदत्तादानविरते: पञ्चातिचारा भवन्ति-स्तेनप्रयोगः तदाहृतावानं विरुद्धराज्यातिक्रमः हीनाधिकमानोन्मानं प्रतिरूपकव्यवहारश्चेति । मोषकस्य विधा प्रयोजनम्-मुष्णन्तं स्वयमेव प्रयुंक्ते, अन्येन वा प्रयोजयति प्रयक्तमनुमन्यते वायःसःस्तेनप्रयोगः । आदिमें रस्सी आदिके द्वारा बाँधना बन्ध नामका अतीचार है । लकडी चाबुक बेंत आदिसे प्राणियोंको मारना वध नामका अतीचार हैं । जीवोंके कान नाक आदि अंगोंका काटना छेद नामका अतिचार है। अतिलोभसे बैल घोडे आदि पर न्याय-सगत भारसे अधिक भारका लादना अतिभारारोपण नामका अतिचार हैं । किसी भी कारणसे उन बैल आदिका खान-पान रोककर उन्हें भूख-प्यासकी बाधासे पीडित करना अन्न-पाननिरोध नामका अतिचार है । स्नेह मोह और द्वेषकी तोव्रतासे जो असत्य बोला जाता है उसके त्यागमें आदर रखना यह गृहस्थ का दूसरा सत्याणवत है। इस व्रतके पाँच अतींचार इस प्रकार हैं-मिथ्योपदेश रहोऽभ्याख्यान कूट लेखक्रिया न्यासापहार और साकार मंत्रभेद । अभ्युदय और निःश्रेयससाधक क्रिया-विशेषों में अन्य पुरुषको अन्यथा प्रवृत्ति कराना, अथवा अन्यथा अभिप्राय कहना मिथ्योपद्रेश है। स्त्री-पुरुषके द्वारा एकान्तमें की गई रति क्रिया आदि गुप्त बातका प्रकाशन करना रहोऽभ्याख्यान हैं । अन्यके द्वारा नहीं कही गई जिस किसी बातको परके आग्रहसे 'उसने ऐसा कहा हैं, अथवा किया है' इस प्रकार दूसरेको ठगनेके लिए झूठे लेख लिखना कूट-लेखक्रिया हैं । अमानतमें रखे हुये सुवर्ण आदि द्रव्यका परिणाम भूल जानेसे अल्प परिमाणमें मांगनेपर उतने ले जानेकी धरोहर रखनेवाले पुरुषको स्वीकृतिका वचन कहना न्यासापहार हैं। किसी अर्थके प्रकरणसे, अंगविकारसे अथवा भ्रुकुटी-विक्षेप आदिसे दूसरेका अभिप्राय जानकर ईर्ष्या आदिके निमित्तसे उसे प्रकट करना साकारमंत्रभेद हैं । राजा आदिके भयसे परवश होकर छोडे गये, रखे हुए गिरे और भूले हुए पराये द्रव्यको बिना दिये लेना चोरी हैं । यह उसके स्वामीको पीडा करती हैं। ऐसी चोरोसे निवृत्त होने में आदर रखना यह श्रावकका तीसरा अचौर्याणुव्रत है। इस अदत्तादानविरतिके पाँच अतीचार इस प्रकार है-स्तेनप्रयोग तदाहृतादान विरुद्धराज्यातिक्रम हीनाधिकमानोन्मान और प्रतिरूपकव्यवहार । चोरको तीन प्रकारसे प्रेरणाकी जाती हैं-एक तो चोरको चोरी करनेके लिए स्वयं प्रेरणा करता है,दूसरे अन्य किसीसे
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