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श्रीमच्चामुण्डराय-प्रणीत चारित्रसार-गत श्रावकाचार
अरिहनन-रजोहनन-रहस्यहरं पूजनाहमहन्तम् । सिद्धान् सिद्धाष्टगुणान् रत्नत्रयसाधकान् स्तुवे साधून ।।१।। धीमज्जिनेन्द्रकथिताय सुमंगलाय लोकोत्तमाय शरणाय विनेयजन्तोः । धर्माय कायवचनाशयशुद्धितोऽहं स्वर्गापवर्गफलदाय नमस्करोमि ॥२॥
धर्मः सर्वसुलाकरो हितकरो धर्म बुधाश्चिन्वते धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं धर्माय तस्मै नमः । धर्मानास्त्यपरः सुहृद्भवभूतां धर्मस्य मूलं दया धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिन हे धर्म मां पालय ।।३।।
सम्यक्त्व-पञ्चाणुव्रतवर्णनम् - सम्यग्दृष्टीनां चत्वारो वन्दना प्रधानभूताः-अर्हन्तः सिद्धाः साधवो धर्मश्चेति । तत्राहसिद्धसाधवो नमस्कारेणोक्ताः । धर्म उच्यते-आत्मानमिष्टनरेन्द्र सुरेन्द्रमुनीन्द्र मुक्तिस्थाने धत्त इति धर्मः, अथवा संसारस्थान् प्राणिनो धरते धारयतीति वा धर्मः । स च सागारानगारविषयभेदाद द्विविधः तत्र सागराधर्म उच्यते
दार्शनिक-वतिकावपि सामायिकः प्रोषधोपवासश्च । सचित्तरात्रिभुक्तिवनिरतौ ब्रह्मचारी च ॥४॥
मोहरूप अरिके हनन करनेवाले, ज्ञानावरण और दर्शनावरणकर्मरूप रजके विनाशक,अन्तरायरूप रहस्यके अपहारक एवं पंचकल्याणकरूप पूजाओंके योग्य ऐसे अरहन्त भगवान्की में स्तुति करता हूँ । सम्यक्त्त्व आदि आठ गुण जिन्हें सिद्ध हो गये है, ऐसे सिद्ध परमेष्ठियोंकी मै स्तुति करता हूँ और रत्नत्रयके साधक आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओंकी मैं स्तुति करता हूँ ॥३॥ मै श्रीमज्जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट उस धर्मको भी मनवचकायकी शुद्धिपूर्वक नमस्कार करता हूँ जो कि श्रेष्ठ मंगलरूप है, लोकमें उत्तम हैं, विनम्र प्रागियोंको शरण देनेवाला है और स्वर्ग तथा मोक्षके सुखरूप फलको देनेवाला है ॥२॥ धर्म सर्व सुखोंका भण्डार हैं, जगतका हितकारी है,उस धर्मको ज्ञानीजन संचय करते है, धर्मके द्वारा ही शिवका सुख प्राप्त होता हैं, ऐसे धर्मके लिए मेरा नमस्कार हो । संसारी प्राणियोंका धर्मसे अन्य कोई मित्र नहीं हैं, धर्मका मूल दया है, ऐसे धर्ममे मै प्रतिदिन अपने चित्तको लगाता हूँ । हे धर्म, मेरी पालना करो ॥३॥
अब सम्यग्दर्शन और पंच अणुव्रतोंका वर्णन करते हैं-सम्यग्दृष्टि जीवोंके लिए अरहन्त सिद्ध साधु और धर्म ये चार वन्दनामें प्रधानभूत है । उनमें अरहन्त सिद्ध और साधुओंका स्वरूप नमस्कार पद्योंके द्वारा कह दिया गया है । अव धर्मका स्वरूप कहते हैं-जो आत्माको अभीष्ट नरेंद्र सुरेन्द्र, तीर्थकर पद और मुक्तिस्थानमें धारण करे, वह धर्म है । अथवा संसारमें स्थित प्राणियोंको जो धारण करता हैं, वह धर्म है। वह सागार (श्रावक) और अनगार (मनि) के भेदसे दो प्रकारका हैं। उसमेंसे सागारधर्मको कहते हैं
दार्शनिक प्रतिक सामायिकी प्रोषधोपवासी सचित्तभुक्ति-विरत रात्रिभुक्तिवत-निरत
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