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________________ यश स्तिलकचम्पूगत-उपासकाध्ययन १३९ परस्परमें विरुद्ध है,अतः एक वस्तुमें एक साथ वे तीनों बातें कैसे हो सकती है क्योंकि जिस समय वस्तु उत्पन्न होती हैं उस समय वह नष्ट कैसे हो सकती हैं और जिस समय नष्ट होती है उसी समय वह उत्पन्न कैसे हो सकती हैं । तथा जिस समय नष्ट और उत्पन्न होती है उस समय वह स्थिर कैसे रह सकती है? इसका समाधान यह हैं कि कित्येक वस्तु प्रति समय परिवर्तनशील है। संसारमें कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। उदाहणके लिए बच्चा जब जन्म लेता है तो छोटा सा होता है,कुछ दिनोंके बाद वह बडा हो जाता हैं । उसमें जो बढोतरी दिखाई देती हैं वह किसी खास समयमें नहीं हुई है, किन्तु बच्चे के जन्म लेने के क्षणसे ही उसमें बढोतरी प्रारम्भ हो जाती है और जब वह कुछ बडा हो जाता है तो वह बढोतरी स्पष्ट रूपसे दिखाई देने लगती है। इसी तरह एक मकान सौ वर्ष के बाद जीर्ण होकर गिर पडता हैं । उसमें यह जीर्णता किसी खास समयमें नहीं आई, किन्तु जिस क्षणसे वह बनना प्रारम्भ हुआ था उसी क्षणसे उसमें परिवर्तन होना प्रारम्भ हो गया था उसीका यह फल है जो कुछ समयके बाद दिखाई देता है। अन्य भी अनेक दष्टान्त हैं जिनसे वस्तु प्रति समय परिवर्तनशील प्रमाणित होती है। इस तरह वस्तके परिवर्तनशील होनेसे उसमें एक साथ तीन बातें होती हैं, पहली हालत नष्ट होती है, और जिस क्षणमें पहली हालत नष्ट होती हैं उसी क्षणमें दूसरी हालत उत्पन्न होती हैं । ऐसा नहीं है कि पहली हालत नष्ट हो जाये उसके बाद दूसरी हालत उत्पन्न हो पहली हालतका नष्ट होना ही तो दूसरी हालतकी उत्पत्ति है । जैसे, कुम्हार मिट्टीको चाकपर रखकर जब उसे घुमाता है तो उस मिट्टीकी पहली हालत बदलती जाती हैं और नई-नई अवस्थाएँ ससमें उत्पन्न होती जाती हैं। पहली हालतका बदलना और दूसरोका बनना दोनों एक साथ होते है । यदि ऐसा माना जायेगा कि पहली हालत नष्ट हो चुकनेके बाद दूसरी हालत उत्पन्न होती हैं तो पहली हालतके नष्ट हो चुकने और दूसरी हालतके उत्पन्न होने के बीच में वस्तुमें कौन-सी हालत-दशा मानी जायेगी। घडा जिस क्षणमें फूटता हैं उसी क्षणमें ठीकरे पैदा हो जाते है । ऐसा नहीं हैं कि घडा पहले फूट जाता है पीछेसे उसके ठीकरे बन जाते हैं । घडेका फटना ही ठीकरेका उत्पन्न होना है और ठीकरेका उत्पन्न होना ही घडेका फूटना है । अतः उत्पाद और विनाश दोनों एक साथ होते है-एकही क्षणमें एक पर्याय नष्ट होती हैं और दूसरी पर्याय उत्पन्न होती है,और इनके उत्पन्न और नष्ट होने पर भी द्रव्य-मलवस्त कायम रहती हैं-न वह उत्पन्न होता हैं और न नष्ट । जैसे घडेके फट जाने और ठीकरेके उत्पन्न हो जानेपर भी मिट्टी दोनों हालतोंमें बराबर कायम रहती हैं। अत । वस्तु प्रति समय उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त कहलाती हैं । वस्तुको देखनेकी दो दृष्टियाँ है-एक दृष्टिका नाम हैं द्रव्यार्थिक और दूसरीका नाम हैं पर्यायाथिक । द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टि से वस्तु ध्रुव है, और पर्यायाथिक नय की दृष्टिसे उत्पाद-व्ययशील हैं। यदि वस्तुको केवल प्रतिक्षण विनाशशील या केवल नित्य माना जायेगा तो बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था नहीं बन सकेगी । क्योंकि सर्वथा एक रूप माननेपर उसमें स्वभावान्तर नहीं हो सकेगा ॥१०३।। भावार्थ-वस्तुको उत्पाद विनाशशील न मानकर यदि सर्वथा क्षणिक ही माना जायेगा तो प्रत्येक वस्तु दूसरे क्षणमें नष्ट हो जायेगी। ऐसी अवस्थामें जो आत्मा बंधा है वह तो नष्ट हो जायेगा तव मुक्ति किसकी होगी? इसी तरह यदि वस्तुको सर्वथा नित्य माना जायेगा तो वस्तुमें कभी भी कोई परिवर्तन नहीं हो सकेगा। और परिवर्तन न होनेसे जो जिस रूपमें हैं वह उसी रूपमें बनी रहेगी। अतः बद्ध आत्मा सदा बद्ध ही बना रहेगा, अथवा कोई आत्मा बँधेगा ही नहीं; क्योंकि जब वस्तु सर्वथा नित्य हैं तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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