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________________ यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन . षष्ठ आश्वास धर्मात्किलैष जन्तुर्भवति सुखी जगति स च पुनर्धर्मः । किरूप: किभेद: किमुपायः किंफलश्च जायेत॥१ यस्मादभ्युदयः पुंसां निःश्रेयसफलाश्रयः । वन्दति विदिताम्नायस्तं धर्म धर्मसूरयः ।। २ स प्रवृत्तिनिवृत्त्यात्मा गृहस्थेतरगोचरः प्रवृत्तिर्मुक्तिहेतौ स्यानिवृत्तिभवकारणात् ।। ३ सम्यक्त्वज्ञानचारित्रत्रयं मोक्षस्य कारणम् । संसारस्य च मीमांस्यं मिथ्यात्वादिचतुष्टयम् ।। ४ सम्यक्त्वं भावनामाहुर्युक्तियुक्तेषु वस्तुषु । मोहसन्देहविभ्रान्तिवजितं ज्ञानमुच्यते ॥ ५ कर्मादाननिमित्तायाः क्रियायाः परमं शमम् । चारित्रोचितचातुर्याश्चारुचारित्रमूचिरे ।। ६ सम्यक्त्वज्ञानचारित्रविपर्ययपरं मनः । मिथ्यात्वं विष भाषन्ते सूरयः सर्ववेदिनः ॥७ अत्र दुरागमवासनाविलासिनीवासितचेतसां प्रवर्तितप्राकृतलोकानोकहोन्मूलनसमयस्रोतसां सदाचाराचरणचातुरी विदूरवर्तिनां परवादिनां मुक्तेरुपाये काये च बहुवृत्तयः खलु प्रवृत्तयः । तथा धर्मसे यह प्राणी जगत्में सुखी होता है। उस धर्मका क्या स्वरूप हैं? कितने भेद है? तथा उसका क्या उपाय और क्या फल हैं ॥१॥ जिससे मनुष्योंके ऐसे अभ्युदयकी प्राप्ति होती है, जिसका फल मोक्ष हैं उसे आम्नायके ज्ञाता धर्माचार्य धर्म कहते है ॥२॥ वह धर्म प्रवृत्ति और निवृत्तिरूप है। मोक्षके कारणोंमें लगनेको प्रवृत्ति और संसारके कारणोंसे बचनेको निवृत्ति कहते है। वह धर्म गहस्थ धर्म और मनि धर्मके भेदसे दो प्रकारका है॥३॥ अब प्रश्न यह है कि मक्तिका कारण क्या हैं और संसारका कारण क्या हैं? तथा गृहस्थोंका धर्म क्या हैं और मुनियोंका धर्म क्या हैं? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र मोक्षके कारण हैं । तथा मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय और योग संसारके कारण हैं।।४।। युक्तियुक्त वस्तुओंमें दृढ आस्थाका होना सम्यग्दर्शन हैं और मोह, सन्देह तथा भ्रमसे रहित ज्ञानका होना सम्यग्ज्ञान है ।।५।। जिन कामोंके करनेसे कर्मोका बन्ध होता है उन कामोंके न करनेको चारित्रमें चतुर आचार्य सम्यक्चारित्र कहते है ।।६।। तथा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्मक्चारित्रके विषय में विपरीत मानसिक प्रवृत्तिको सर्वविद् आचार्योने मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र कहा है ।।७।। ____ अन्य मतवाले मुक्तिका स्वरूप तथा उपाय अलग-अलग बतलाते है। १. सैद्धान्तिक वैशेषिकोंका कहना है कि सशरीर का शरीर परम शिवके द्वारा प्राप्त हुए मन्त्र-तन्त्र पूर्वक दीक्षा धारण करना और उनपर श्रद्धा मात्र रखना मोक्षका कारण है । २.तार्किक वैशेषिकोंका कहना है कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, समवाय, विशेष और अभाव इन सात पदार्थोके साधर्म्य और वैधर्म्य मूलक ज्ञान मात्रसे मोक्ष होता है। ३. पाशुपतोंका कहना है कि तीनों समय प्रातः दोपहर और शामको भस्म लगाने,शिवलिंगकी पूजा करने, उसके सामने जलपात्र स्थापित करने,प्रदक्षिणा करने और आत्मदमन आदि क्रियाकाण्डमात्रके अनुष्ठानसे मोक्ष होता है । ४. कुलाचार्यकोंका कहना है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001551
Book TitleShravakachar Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1988
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size14 MB
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