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अष्टसहस्री
[ द्वि० ५० कारिका २५ स्योर्थ' इति चेन्न, प्रतिभासमात्रस्याहेतुकत्वात्कस्यचित्तद्धेतुत्वायोगात् । तदहेतुकत्वम्, अकादाचित्कत्वात्, अन्यथा कदाचित्तदभावप्रसङ्गात् । प्रतिभासालम्बनत्वात्प्रतिभास्योर्थो भवतीति चेत्कुतस्तस्य' प्रतिभासालम्बनत्वम् ? प्रतिभास्यत्वादिति चेत्परस्पराश्रयणम् । प्रतिभासोलम्बनत्वयोग्यत्वादिति चेतहि प्रतिभासस्वरूपमेव प्रतिभास्यं, तस्यैव प्रतिभासालम्बनत्वोपपत्तेः सर्वत्र प्रतिभासस्य स्वरूपालम्बनत्वात् । तथा च कथं "विषयस्योपचरितं प्रतिभाससमानाधिकरणत्वं यतोसिद्धो हेतुः स्यात्ः । तत एव नानकान्तिको विरुद्धो वा, प्रतिभासान्तरऽप्रविष्टस्य 12कस्यचिदपि प्रतिभाससमानाधिकरणत्वायोगाद्धेतोविपक्षवृत्त्यभावात् । 14नाश्रयासिद्धिरपि15 हेतोः शङ्कनीया, सर्वस्य धर्मिणः परब्रह्मण एवाश्रयत्वात्16
जैन-प्रतिभास का आलम्बन लेने से अर्थ प्रतिभास्य होते हैं। अद्वैतवादी-यदि ऐसी बात है तब तो उस अर्थ में प्रतिभास का आलंबन कैसे है ? जैन-प्रतिभास्य-प्रतिभासित होने योग्य होने से वह प्रतिभास-ज्ञान का आलम्बन है।
अद्वैतवादी-यदि आप ऐसा कहें तब तो परम्पराश्रय दोष आ जाता है अर्थात प्रतिभास का आलम्बन होने पर अर्थ प्रतिभास्य होगा। अर्थ के प्रतिभास्य होने पर प्रतिभास में प्रतिभास्य का आलम्बन सिद्ध होगा एवं एक दूसरे के आश्रित होने से एक की भी सिद्धि नहीं हो सकेगी।
जैन-प्रतिभास आलंबन योग्य होने से अर्थ प्रतिभास्य है।
अद्वैतवादो-तब तो प्रतिभास का स्वरूप ही प्रतिभास्य है। उस प्रतिभास स्वरूप को ही प्रतिभास का आलम्बनत्व सिद्ध है क्योंकि सभी जगह प्रतिभास अपने स्वरूप का
1 का ही आलम्बन लेता । पुन: उस प्रकार से विषय में प्रतिभास समानाधिकरण उपचरितरूप कैसे होगा? कि जिससे यह हेतु असिद्ध हो सके अर्थात् "प्रतिभास समानाधिकरणत्वात्" यह हेतु असिद्ध नहीं है। "विषय में प्रतिभास समानाधिकरणत्व उपचरित नहीं है" इसलिए यह हेतु अनैकांतिक अथवा विरुद्ध भी नहीं है क्योंकि प्रतिभास के भीतर में अप्रविष्ट किसी भी वस्तु में प्रतिभास समानाधिकरणत्व का अभाव
अत: यह हेतु विपक्ष में नहीं रहता है। यह हेतु आश्रयासिद्ध है ऐसी भी शंका नहीं करनी चाहिये क्योंकि सभी ग्रामारामादि धर्मी उस परमब्रह्म के ही आश्रित हैं।
1 अस्तीति । दि० प्र० । 2 ब्रह्म । दि० प्र० । 3 प्रतिभासमात्र निष्कारणमित्यर्थः । दि० प्र०। 4 प्रतिभासमात्रस्य स हेतुकत्वे कस्मिश्चित्काले तस्य प्रतिभासमात्रस्याभावो घटते। दि० प्र०। 5 स्याद्वादी वदति अर्थ: सर्वः प्रमेयो भवति । कस्मात् प्रमाणविषयत्वात् । दि० प्र०। 6 ग्राह्यत्वात् । ब्या० प्र०। 7 अर्थस्य। दि० प्र० । 8 विषयः । प्रतिभासस्य । दि० प्र०। 9 सर्वप्रतिभासस्य । इति पा० । दि० प्र०। 10 एवं सति । दि० प्र० । 11 अर्थस्य । दि० प्र०। 12 खरविषाणादेः । ब्या० प्र०। 13 प्रतिभाससमानाधिकरणत्वादिति हेतोः विपक्षेऽप्रतिभासमानेप्रवृत्त्यभावात्प्रवर्त्तनाघटनात् । दि० प्र०। 14 नान्यथासिद्धिरपि इति पा० । दि० प्र० । 15 सर्वस्य धर्मिणोः ग्राहकप्रमाणसद्भावे धमिग्राहकप्रमाणबाधितो हेतुस्तद्भावेपि हेतोराश्रयासिद्धि: । प्रमाणेनासिद्धे प्रयुक्तो हेतुराश्रयासिद्धिरिति वदन्तं प्रत्याह । दि०प्र० । 16 हेतोः । दि० प्र० ।
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