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नय का लक्षण ]
तृतीय भाग
तदेव च 'प्रतिबन्ध पूर्ववद्वीतसंयोग्यादिसकलहेतुप्रतिष्ठापकं, न पुनस्तादात्म्यतदुत्पत्ती प्रतिबन्धः संयोगादिवत्, 'तदभावेपि हेतोः साध्याभावासंभवनियमनिर्णयलक्षणस्य भावे गमकत्वसिद्धेः, शीताचले विद्युत्पातः, केदारे कलकलायितत्वादित्यादिवत्, सत्यपि च तदुत्पत्त्यादिप्रतिबन्धेऽन्यथानुपपन्नत्वाभावे गमकत्वासंभवात्, स श्यामस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवदित्यादिवत्, अस्त्यत्र धूमोग्नेर्महानसवदित्यादिवच्च । 'सकलविपक्षव्यावृत्तिनिश्चयाभावादस्यागमकत्वे
संयोगी आदि सकल हेतुओं का प्रतिष्ठापक है। किन्तु तादात्म्य और तदुत्पत्ति अविनाभाव सम्बन्ध रूप नहीं हैं, संयोगादि के समान । क्योंकि तादात्म्य, तदुत्पत्ति सम्बन्ध के अभाव में भी साध्य के अभाव में असम्भव रूप नियम निणय लक्षण वाले हेतू के सद्भाव में साध्य का ज्ञान सिद्ध है। जसेशीताचल-हिमाचल पर विद्युत्पात हुआ है। क्योंकि केदारतीर्थ या खेत में कलकल शब्द हो रहा है। इत्यादि के समान । क्योंकि इनमें तदुत्पत्ति आदि सम्बन्ध के होने पर भी अन्यथानुपपन्नत्व का अभाव होने से ये हेतु गमक नहीं है। "वह काला है क्योंकि उसका पत्र है इतर पत्र के समान अनुमान के समान । एवं “यहाँ पर धूम है, क्योंकि अग्नि है, महानस के समान ।" इत्यादि के समान ।
'सकल विपक्षों से व्यावृत्त है" इस प्रकार के निश्चय का अभाव होने से "तत्पुत्रत्वात्" इत्यादि हेतु गमक नहीं हैं । क्योंकि इनमें अन्यथानुपपन्नत्व निश्चय का अभाव होने से ही अगमक पना है । ऐसा ही तो कहा गया है। अर्थात् 'तत्पुत्रत्वात्' आदि हेतु साध्य को सिद्ध करने वाले नहीं हैं तो क्यों नहीं हैं ? यदि आप कहें कि विपक्ष से व्यावृत्त होने का इसमें निश्चय नहीं है तब तो इसका अर्थ यही हुआ कि इनमें अन्यथानुपपत्ति नहीं है अतः ये हेतु अहेतु हैं। इसलिये वही अन्यथानुपपत्ति रूप एक लक्षण ही हेतु का ठीक लक्षण होवे न कि विलक्षण आदि ।
सम्पूर्ण सम्यग्हेतुओं के भेदों में कार्य हेतु स्वभाव हेतु, अनुपलंभहेतुओं के समान पूर्ववत्शेषवत् सामान्यतोदष्ट इन तीन प्रकार के अनुमानों में एवं वीत, अवीत और तदुभय अर्थात् सांख्याभिमतकेवलान्वयी, केवलाव्यतिरेकी, एवं अन्वयव्यतिरेकी इन तीन हेतुओं में तथा संयोगी समवाय
1 व्याप्ति । दि० प्र० । 2 तस्य तादात्म्यतदुत्पत्तिप्रतिबन्धस्याभावेपि साध्याभावे साधनस्याप्यभाव इति सर्वत्र सर्वदा सर्वस्य नियमनिश्चयलक्षणस्य हेतो साध्यसाधकत्वं सिद्धयति । दि० प्र० । 3 साध्याविनाभाव । दि० प्र० । सौगतमते-कारणात्कारणानुमानं =अकार्यकारणादकार्यकारणानुमानंवैशेषिकस्य सांख्यवीतादि- केवलान्वयी = केवलव्यतिरेकी = द्रव्ययोः संयोगः=धूमादि-उष्णस्पर्शानुमा मुष्णस्पर्शस्यासो समवायात् = सांख्यः = रसाद्रूपानुमानरूपरसयोरेकार्थसमवायात् । दि० प्र० । 4 साध्याभावे साधनस्याप्यभाव इत्यन्यथानुपपत्तिः । ब्या० प्र०।- च ब्या०प्र०। 6 मैत्रीपूत्रं पक्षः श्यामो भवतीति साध्यो धर्मः। तत्पुत्रात् यस्तत्सूत्रः स श्यामो यथा इतरतत्पुत्र इति हेतोरन्यथानुपपन्नत्वाभावे साध्यसाधकत्वं न संभवति कुतः सकलदेशकालसर्वपूत्रक्रोडीकरणाभावात् । कथं कदाचिद्गर्भस्थ उत्पत्स्यमानस्तत्पुत्र: गौरोपि भवतीति संदेहघटनात् । दि० प्र०। 7 यत्र धूमो नास्ति तत्राग्निर्नास्ति । ब्या० प्र० ।
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