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अष्टसहस्री
[ द०प० कारिका १०३ प्रति मतिर्भिन्ना बहुधा 'न्यायवेदिनाम् ॥२॥ इति । अत्रोच्यते,-पदानां परस्परापेक्षाणां निरपेक्षः समुदायो वाक्यं, (१) न पुनराख्यातशब्द:, 'तस्य पदान्तरनिरपेक्षस्य 'पदत्वादन्यथाख्यात पदाभावप्रसङ्गात् । पदान्तरसापेक्षस्यापि क्वचिन्निरपेक्षत्वाभावे वाक्यत्वविरोधात्, प्रकृतार्थापरिसमाप्तेः, 'निराकांक्षस्य तु वाक्यलक्षणयोगादुपपन्नं वाक्यत्वम् । (२) संघातो वाक्यमित्यत्रापि परस्परापेक्षाणां पदानामनपेक्षाणां वा ? प्रथमपक्षेः निराकाङ्क्षत्वेस्मत्पक्षसिद्धिः, साकाङ्क्षत्वे वाक्यत्वविरोधः । द्वितीयविकल्पेतिप्रसङ्गः । (३) जातिः संघातवर्तिनी
इन श्लोकों में उन वाक्यों के १० भेद किये गये हैं।
जैन-परस्पर में आपेक्षित पदों का जो निरपेक्ष-(वाक्यांनतरगतपदनिरपेक्ष) समुदाय है उसे वाक्य कहते हैं।
१. किन्तु आख्यात शब्द को वाक्य नहीं कहते हैं। क्योंकि वह पदांतर से निरपेक्ष पद है। अन्यथा आख्यात पद के अभाव का प्रसंग आ जायेगा। पदांतर सापेक्ष भी आख्यात शब्द को किसी वाक्यांतर पद में सापेक्ष मान लेने पर तो वह वाक्य ही विरुद्ध हो जायेगा। क्योंकि वह प्रकृतार्थ परिसमाप्त नहीं है । अर्थात् वह पर अपर वाक्यांतरगत पद की अपेक्षा से प्रकृत अर्थ में परिसमाप्त नहीं होता है । किन्तु वाक्यांतरगत पदों से निरपेक्ष होने से निराकांक्ष में ही वाक्य काल क्षण घटित होने से वही वाक्य है।
२. यदि आप पदों के संघात को वाक्य कहते हैं तब तो हम आपसे यह प्रश्न करते हैं कि परस्परापेक्ष पदों का संघात वाक्य है या अनपेक्ष पदो का संघात वाक्य है? प्रथम पक्ष लेने पर निराकांक्ष होने पर हमारे ही पक्ष की सिद्धि हो जाती है। अर्थात ऊपर हमने परस्परापेक्ष पदों के संघात-निरपेक्ष समुदाय को वाक्य माना है । यदि आप परस्परापेक्ष पदों के संघात को भी साकांक्ष-भिन्न वाक्यों के पदों की भी अपेक्षा रखने वाला मान लेंगे तब तो वह वाक्य ही नहीं हो सकेगा, उसमें विरोध आ जायेगा। यदि द्वितीय पक्ष लेवो तो अति प्रसंग दोष आता है अर्थात बहुत से पुरुषों के द्वारा उच्चरित पदों में भी वाक्यपना आ जायेगा। किन्तु ऐसा तो है नहीं।
३. जिनका कथन है कि 'संघातवर्तिनी जाति को वाक्य कहते हैं' उनका निरसन भी इसी
1 न्यायतर्कशास्त्रं हेतुविद्यात्मको न्याय इति वचनात् । दि० प्र०। 2 अत्राख्यातशब्दादिलक्षणेष्वन्योन्यं सापेक्षाणां पदानां यः निरपेक्षः समुदाय: स वाक्यं स्याद्वादिभिः प्रतिपाद्यते । दि० प्र०। 3 आख्यातशब्दस्य । दि. प्र० । 4 तथा त्वयाङ्गीकरणात् । ब्या० प्र०। 5 अन्यपदनिरपेक्षस्यापि आख्यातशब्दस्य वाक्यत्वं भवति चेत्तदा आख्यातपदस्य सर्वथाऽभाव: प्रसजति । दि० प्र०। 6 कुत आख्यात शब्दस्य परेण वाक्यत्वनिरूपणात् । ब्या प्र०। 7 आख्यातपदस्य। दि० प्र०। 8 परस्परापेक्षाणां पदानां संघातो वाक्यमिति प्रथमपक्षे तस्यान्यपदानां निराकांक्षत्वे सत्यस्मत्पक्षसिद्धिर्भवति। तस्यान्यपदानां साकांक्षत्वे सति वाक्यत्वं विरुद्धचते परस्परानपेक्षाणां पदानां संघातो वाक्यमिति द्वितीयविकल्पेति प्रसंगः स्यात् । दि० प्र० ।
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