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स्मति और प्रमाण का स्वरूप-प्रत्यभिज्ञान प्रमाण का लक्षण ] तृतीय भाग
[ ५३३ न्तर्भाववदनवस्थानानुषङ्गादागमायुदयविरोधात्, शब्दादिस्मृतिमन्तरेण तदनुपपत्तेः। यदि पुनरागमाद्युत्थापकसामग्रीत्वाच्छब्दास्मृतेरागमादिप्रमाणत्वमप्युररीक्रियते तदा शब्दादिप्रत्यक्षस्यापि तत्सामग्रीत्वादागमादित्वप्रसङ्गः । तथा च स्मृतिवन्न प्रत्यक्षं प्रमाणान्तरं स्यात् । प्रमाणान्तरत्वे 'वा स्मृतेरपि प्रमाणान्तरत्वं, दर्शनानन्तराध्यवसायवन्निर्णीतेपि 'कथंचिदतिशायनादनुमानवत् ।
[ प्रत्यभिज्ञानमपि पृथक् प्रमाणमेव इति जैनाचार्याः साधयंति ] ___एवं प्रत्यभिज्ञानं, प्रमाणं, व्यवसायातिशयोपपत्तेः प्रत्यक्षादिवतु, तत्सामाधीनत्वा
के यहाँ आगम आदि प्रमाण भी उदित नहीं हो सकेंगे क्योंकि शब्दादिकों की स्मृति के बिना वे आगम आदि प्रमाण भी नहीं हो सकते हैं।
पुनः यदि आप कहें कि आगम आदि की उत्थापक सामग्री के होने से शब्दादिकों की स्मृति से आगम आदि प्रमाण भी स्वीकृत किये गये हैं तब तो शब्दादि प्रत्यक्ष भी उसकी सामग्री रूप होने से आगमादि रूप हो जावेंगे और उस प्रकार से स्मृति के समान प्रत्यक्ष भी भिन्न प्रमाण सिद्ध नहीं हो सकेगा।
यदि आप उस प्रत्यक्ष को भिन्न प्रमाण रूप स्वीकार करेंगे तब तो स्मृति को भी भिन्न प्रमाण मानना ही होगा जैसे-दर्शन के अनंतर होने वाले अध्यवसाय रूप सविकल्प ज्ञान को प्रमाण सिद्ध किया है। क्योंकि प्रत्यक्षादि से निर्णीत में भी कथंचित अतिशय देखा जाता है अनुमान के समान । अर्थात् जैसे व्याप्ति से जाने गये में भी अनुमान से विशेष रूप से ग्रहण होता है तथैव प्रत्यक्षादि से निश्चित में भी स्मृति विशेष का ग्रहण होता ही है । अतः स्मृति भी एक पृथक प्रमाण है ।
[ प्रत्यभिज्ञान भी एक पृथक् प्रमाण ही है ऐसा जैनाचार्य सिद्ध करते हैं । ] इस प्रकार से "प्रत्यभिज्ञान भी एक प्रमाण है क्योंकि उसमें व्यवसाय का अतिशय देखा जाता है प्रत्यक्षादि के समान।" प्रमाण की व्यवस्था व्यवसायातिशय की सामर्थ्य के ही आधीन है। अविसंवाद भी स्वार्थ व्यवसायात्मक है । अन्यथा संशयादि के समान विसंवाद हो जावेगा और यह प्रत्यभिज्ञान अव्यवसायात्मक नहीं है।
1 आगमादि । दि० प्र०। 2 स्या० तथा सति यथा आगमादितः सकाशात् स्मृतिभिन्न प्रमाणं न तथा प्रत्यक्षमपि भिन्नं नागमादिषु पतित्वात् अथ चेत्तदाभिप्रायेण प्रत्यक्षं भिन्न प्रमाणं तदा स्मृतैरपि भिन्नप्रमाणत्वं भवतु यथा सौगताभ्युपगतानि निविकल्पकदर्शनानन्तरभाविसविकल्पकज्ञानमर्थनिश्चायकत्वात् प्रमाणम् । दि० प्र०। 3 अतीतकालादित्वेन । ब्या० प्र०। 4 स्मतिप्रकारेण । व्या० प्र० ।
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