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अष्टसहस्री
[ द० प० कारिका ६६ त्वादिविशेषोपेतेनाविनाभावि दृष्टेतरविशेषाधिकरणबुद्धिमत्कारणसामान्यं कुतश्चित् सिधयेत् । न च सिध्यति, अनेकबुद्धिमत्कारणेनैव स्वोपभोग्यतन्वादिनिमित्तकारणविशेषेण तस्य व्याप्तत्वसिद्धेः समर्थनात् । तथा सर्वज्ञवीतरागकर्तृकत्वे साध्ये घटादिनानैकान्तिक साधनं, साध्यविकलं च निदर्शनम् । सरागासर्वज्ञकर्तृकत्वे साध्येपसिद्धान्तः । सर्वथा कार्यत्वं च साधनं तन्वादावसिद्धं, तस्य' कथंचित्कारणत्वात् । कथंचित्कार्यत्वं तु विरुद्धं, सर्वथा बुद्धिमन्निमित्तत्वात्साध्याद्विपरीतस्य कथंचिबुद्धिमन्निमित्तत्वस्य साधनात् । तथा पक्षोप्य
जैन-यदि ऐसा होता तब तो यह बात हो सकती है कि यदि सकल जगत के निर्माण करने में समर्थ, एक, समस्त सृष्टि का कर्ता, सर्वज्ञ आदि विशेष गुणों से अविनाभावी, दृष्टाष्ट 'विशेष के आधारभूत बुद्धिमत्कारण सामान्य, किसी प्रमाण से सिद्ध होवे । अर्थात् यदि ऐसा ईश्वर सिद्ध होवे तब तो उपर्युक्त कथन ठीक हो सकता था किन्तु ऐसा ईश्वर सिद्ध तो होता नहीं है क्योंकि अपने उपभोग के योग्य तनु आदि में निमित्तकारण विशेष ऐसे अनेक बुद्धिमत्कारण से ही वह बुद्धिमत्कारण सामान्य व्याप्त है ऐसा ही समर्थन किया गया है।
उसी प्रकार से सर्वज्ञ वीतराग को सृष्टि का कर्ता साध्य करने पर यह 'कार्तव्य' हेतु घटादिकों से अनेकांतिक हो जावेगा । एवं 'घटवत्' दृष्टांत भी साध्य विकल हो जावेगा। तथा सराग, अल्पज्ञ सृष्टि का कर्ता है ऐसा साध्य बनाने पर तो आपका सिद्धान्त बाधित हो जावेगा एवं तनु आदि में सर्वथा कार्यत्व हेतु असिद्ध है क्योंकि वह कथंचित् कारण रूप हैं और "कथंचित् कार्यत्व हेतु" भी आपके यहां विरुद्ध है क्योंकि सर्वथा बुद्धिमत्कारणभूत साध्य से विपरीत कथंचित् बुद्धिमत्कारण को ही सिद्ध करता है। अर्थात् तनु आदिकों में यह कार्यत्व हेतु सर्वथा है या कथंचित् है ? ऐसे दो प्रकार के विकल्पों को उठाकर दूषण दिखाया गया है । यदि सर्वथा कहा जाये तो यह हेतु असिद्ध दोष से दूषित हो जाता है क्योंकि इस हेतु के धर्मी-तनु आदि कथंचित् ही कार्यरूप हैं सर्वथा नहीं हैं । यदि कथंचित् कहा जावे तब तो विरुद्ध है क्योंकि आपने साध्य को सर्वथा बुद्धिमन्निमित्तक माना है यह हेतु उससे विपरीत कथंचित् को सिद्ध कर देता है अतः आपका कार्यत्व हेतु असिद्ध, विरुद्ध दोषों से दूषित ही है।
1 ता। दि० प्र० 1 2 जगतः। ब्या० प्र०। 3 विशेषत्वेन । ब्या० प्र०। 4 स्या० वदति तनुकरणभुवनादिके पक्ष: सर्वज्ञवीतरागलक्षणबुद्धिमत्कारणकं भवतीति साध्यो धर्मः कार्यत्वाद्घटादिवदिति परस्यानुमाने कार्यत्वादिति हेतु: कुलालादिनिर्मितघटादिना व्यभिचारी भवति कथमित्युक्त आह हेतुस्तन्वादी वर्तते घटादौ च यतः तथा घटवदिति दृष्टान्तश्च साध्य शुन्यः कथमित्युक्त आह घटः कार्यरूपमस्ति, परन्तु असर्वज्ञावीतरागनिमितं यतः = अथवा असर्वज्ञसरागलक्षणबुद्धिमत्कारणकं भवतीति साध्यत्वे सत्ययं सिद्धान्तो भवति पूनः स्याद्वादी वदति हे स्याद्वादिन् ! कार्यत्वादिति साधनं सर्वथा कार्यत्वं कथञ्चित्कार्यत्वं वेति विकल्पः प्रथमपक्षे तन्वादी साध्येऽसिद्ध कस्मात् । तत्साधनं कथञ्चित्कारणरूपेण च वर्तते यतो द्वितीयपक्षे साधनं सर्वथा बुद्धिमन्निमित्तत्वलक्षणात् त्वदभिप्रेतासाध्याद्विपरीतं स्याद्वाद्यभिमतं कथञ्चिदद्धिनिमित्तत्वं साधयति यतः दि० प्र०। 5 हेतु: विचारयति । ब्या० प्र०। 6 साधनस्य । दि० प्र०। 7 स्वकार्यापेक्षया। ब्या० प्र०। 8 न केवलं हेतुरनेकदोषदुष्टः । ब्या० प्र० ।
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