________________
५०६ ]
[ द० प० कारिका ६६
न चैवमीश्वरस्याप्यनुमितत्वादुपालम्भप्रसङ्गनिवृत्तिः । स्यादिति शङ्कनीयं तदनुमानस्यानेकदोषदुष्टत्वात्' । तथा हि तनुकरणभुवनादेः कार्यत्वादिसाधनं किमेकबुद्धिमत्कारणत्वं साधयेदनेकबुद्धिमत्कारणत्वं वा ? प्रथमपक्षे प्रासादादिनानेकसूत्रधारयजमानादिहेतुना + तदनैकान्तिकम् । द्वितीयपक्षे सिद्धसाधनं नानाप्राणिनिमित्तत्वात्तदुपभोग्यतन्वादीनां तेषां तददृष्टकृतत्वात् । एतेन बुद्धिमत्कारणसामान्यसाधने सिद्धसाधनमुक्तं, "तदभिमत विशेषस्याधिकरण सिद्धान्तन्यायेनाप्यसिद्धेः ' । सामान्यविशेषस्य साध्यत्वाददोष इति चेन्न, दृष्टादृष्ट
अष्टसहस्री
जैन - ऐसी आशंका नहीं करना क्योंकि ईश्वर को सिद्ध करने वाले आपके सभी अनुमान अनेक दोषों से दूषित हो जाते हैं । तथाहि - हम आपसे प्रश्न करते हैं कि तनुकरण भुवनादि को बुद्धिमतकारणी सिद्ध करने वाले आपके कार्यत्वादि हेतु एक बुद्धिमत्कारण को सिद्ध करते हैं या अनेक बुद्धिमत्कारणको सिद्ध करते हैं ।
प्रथम पक्ष लेवो तब तो अनेक सूत्रधार यजमानादि रूप कारण से होने वाले प्रासादादि से अनैकांतिक दोष आता है क्योंकि वे प्रासादादि कार्य तो हैं फिर भी एक बुद्धिमत्कारण वाले नहीं हैं । उनके बनाने वाले अनेक हैं ।
द्वितीय पक्ष लेने पर तो सिद्ध साधन दोष आता है क्योंकि उन प्राणियों के उपभोग करने योग्य तनुकरणभुवन आदि अनेक प्राणियों के निमित्त से ही हुये हैं और वे शरीर आदि उन-उन प्राणियों के अदृष्ट-भाग्य से ही किये गये हैं ।
इस कथन से "बुद्धिमत्कारण सामान्य को साध्य करने पर सिद्ध साधन दोष आता है" ऐसा सिद्ध किया गया है । एवं उन नैयायिकों को अभिमत जो विशेष है वह भी अधिकरण सिद्धान्त के न्याय से असिद्ध ही है ।
योग - सामान्य विशेष सहित बुद्धिमत्कारण को हमने साध्य बनाया है इसलिये कोई दोष नहीं है।
जैन - ऐसा नहीं कहना क्योंकि दृष्ट और अदृष्ट विशेष का आश्रय करने वाला सामान्य दो प्रकार के विकल्पों का उल्लंघन नहीं करता है । अर्थात् सामान्य दो प्रकार का है एक तो
दृष्ट विशेष
1 ईश्वर । ब्या० प्र० । 2 कर्तृ । दि० प्र० । 3 बसः । व्या० प्र० । 4 तन्वादीनां प्राणिनां संसारिणामदृष्टकृतत्वात् । नानाप्राणि । दि० प्र० । 5 तेषामीश्वरवादिनाम् । स चासो अभिमतविशेषस्तदभिमतविशेषस्तस्य बुद्धिमत्कारणस्येश्वरस्याधिकरण सिद्धान्तन्यायेन कृत्वा सिद्धिर्घटत इत्युक्तं परेण स्था० वदत्येवं न = अत्राह परः हे स्याद्वादिन् सामार्थं साध्यं विशेषः साध्यं तयोः साध्यत्वात् बुद्धिमत्कारणस्य ईश्वरस्य शासने दोषो नास्तीति चेत = स्या० न । कस्मात् दृष्टविशेषाश्रवसामान्यमदृष्टविशेषाश्रयसामान्यमिति विकल्पद्वयानुल्लंघनात् दि० प्र० । 6 सामान्यमात्रं साध्यते चेतहि सामान्यमात्र साधने नाभिमतः सिद्धिकस्मात् स्यात् । दि० प्र० । 7 बसः । व्या० प्र० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org