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अष्टसहस्र
[ तृ० प० कारिका ४४
बौद्धाभिमत क्षणिकैकांत खण्डन का सारांश
बौद्ध - हमारे क्षणिक एकांत पक्ष में भी चित्त क्षणों में वासना के निमित्त से "यह वही सुख साधन है" इस प्रकार से स्मरणपूर्वक प्रत्यभिज्ञान देखा जाता है । उस प्रत्यभिज्ञान से अभिलाषा एवं उससे सुख के लिये प्रवृत्ति होती है अतः संतान के कार्य का आरम्भ होने से पुण्य पाप क्रिया प्रेत्यभाव आदि सिद्ध हैं । पूर्व - पूर्व का ज्ञानक्षण उत्तर ज्ञानक्षण को उत्पन्न करता है उसे ही वासना कहते हैं उसी का नाम संतान है वही कारण है अतः कार्य कारण में अन्वयव्यतिरेक होने से स्मृति आदि समी सम्भव हैं ।
इस पर जैनाचार्यों का कहना है कि एक अन्वयरूप प्रत्यभिज्ञाता आत्मा को न मानने से आपके यहाँ प्रत्यभिज्ञान आदि असम्भव हैं । आपने सन्तान को तो अवस्तु माना है तथा भिन्न-भिन्न कालीन ज्ञानक्षणों में वासना ही असम्भव है जैसे घट एवं तन्तु का कार्य-कारण सम्बन्ध न होने से उसमें वासना असम्भव है तथैव आपके यहाँ कारण का निरन्वय विनाश होकर उत्तर क्षण में कार्य होता है अतः न उन कार्य-कारणों में अन्वय व्यतिरेक हो सकता है न वासना हो, क्योंकि नष्ट हुआ कारण कार्य को उत्पन्न करने में कथमपि समर्थ नहीं है। घट के पूर्वक्षण का मृत्पिण्ड ही घट बना है न कि उसका सर्वथा विनाश होकर घट बना है । हाँ, पूर्व पर्याय का विनाश होकर नवीन घंट पर्याय का उत्पाद हुआ है उन दोनों पर्यायों में मिट्टी अन्वयरूप है।
यदि आप कहें कि नित्य पदार्थ प्रतिक्षण अनेक कार्य करने वाला है अतः उसमें अनेक स्वभाव सिद्ध हैं किन्तु क्षणिक में अनेक स्वभाव नहीं है । आपका यह कथन गलत है क्योंकि कारण में शक्ति भेद मानें बिना कार्य भी अनेक नहीं हो सकते हैं । जैसे एक दीपक से बत्ती, तेल शोषण, तमोनिरसन, कज्जलमोचन, अर्थ प्रकाशन आदि अनेक कार्य देखे जाते हैं "अतः वे भेद प्रदीपगत शक्ति के भेद के निमित्त से हुये हैं। यदि आप प्रश्न करें कि शक्तिमान से शक्तियाँ भिन्न हैं या अभिन्न ? यदि भिन्न मानों तब तो सम्बन्ध कैसे सिद्ध होगा ? अभिन्न मानों तब तो शक्तिमान ही रहेगा । कल्पित अशक्ति व्यावृत्ति को छोड़कर शक्ति नाम से कोई चीज ही नहीं रहेगी । अतः वे शक्तियाँ परमार्थभूत नहीं हैं । अनेक कार्य को उत्पन्न करने वाली शक्ति एक है अनेक नहीं, सहकारी कारण के भेद से एक दीपक अनेक कार्य करता है ।
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आपका यह कथन सर्वथा गलत है । ऐसे तो हम भी प्रश्न करेंगे कि द्रव्य से रूपादि भिन्न हैं या अभिन्न ? ऐसे कुतर्कों के उठाने से तो कोई भी वस्तु वास्तविक सिद्ध नहीं होगी । अतः कारण में शक्ति भेद होने से ही कार्य में भेद होते हैं । मात्र सहकारी कारण भेद से नहीं होते हैं ।
बौद्ध का कहना हूँ कि क्षण के अनंतर न ठहरना ही वस्तु का स्वभाव है अतः वस्तु सर्वथा क्षणिक है एवं विनाश सर्वथा अहेतुक है । घड़े का विनाश मुद्गर हेतु नहीं किन्तु कपाल के उत्पाद में मुद्गर हेतुक अवश्य है । किन्तु हमारा सिद्धांत है कि घट का विनाश एवं कपाल का उत्पाद एक समय में ही होता है अतः विनाश एवं उत्पाद दोनों में हेतु एक ही है मुद्गर से ही घट का फूटना
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