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भमि हो गई है। उसके बाद भगवान शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाय इन तीन तीर्थकरों का गर्भ, जन्म, तप एवं केवलज्ञान ऐसे चार-चार कल्याण इसी भूमि पर सम्पन्न हये हैं। तीनों महापुरुष तीर्थकर की पदवी के साथ-साथ चक्रवर्ती व कामदेव भी थे । यही हस्तिनापुर कौरव-पांडवों की राजधानी रही है। रक्षा-बन्धन का पर्व इसी हस्तिनापुर से प्रारम्भ हुआ है, जहाँ पर ७०० मुनियों के विशाल संघ पर बलि नामक मन्त्री ने उपसर्ग किया था और विष्णुकुमार महामुनि ने वामन का रूप धारण करके उस उपसर्ग का निवारण किया था। इसके अलावा जैन पराणों में अनेक कथानक इस हस्तिनापूर भूमि से जुड़े हए हैं। अत: यह उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक स्थल है, लेकिन प्रचार की कमी से यह तीर्थ बहुत पिछड़ा हुआ था । जम्बूदीप निर्माण के बाद इस स्थल का प्रचार देश-विदेश में बराबर हो रहा है, जिससे आने वाले जैन-अजैन यात्रियों की संख्या में विगत वर्षों में दस गुनी वृद्धि हुई है।
संस्थान के परिवयोपरान्त ग्रन्थमाला के समस्त सहयोगियों एवं प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोग देने वाले समस्त दाताओं के प्रति आभार ज्ञापित करना मेरा कर्तव्य है।।
ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिये श्री सुमन प्रिटस, मेरठ के मालिक श्री हरीशचन्द जैन ने सुन्दर मुद्रण के साथ इसे प्रकाशित करने में हमें जो सहयोग प्रदान किया है। उसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं। हस्तिनापुर १५-३-६०
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