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________________ ____७८ ] अष्टसहस्री [ द्वि०प० कारिका ३४ ननु चैकत्वप्रत्ययात्पृथक्त्वप्रत्ययाच्च कथमेकत्वं पृथक्त्वं च जीवादीनामुपपन्नं तस्य निविषयत्वादित्यारेकायां तस्य सविषयत्वमादर्शयितुमनसः स्वामिनः प्राहुः । - 'सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः' । भेदाभेदविवक्षायामसाधारणहेतुवत् ॥३४॥ 'तु विशेषणे । तेन सत्सामान्य विशेषणमाश्रित्य12 सर्वेषां 13जीवादीनामैक्यमिति नैकत्वप्रत्ययो निर्विषयः, तस्य सत्सामान्यविषयत्वात् । पृथक् सर्वं जीवादि द्रव्यादिपदार्थभेद उत्थानिका-अब बौद्ध कहता है कि एकत्व के निमित्त से और पृथक्त्व के निमित्त से जीवादि वस्तओं में एकत्व और पथक्त्व कैसे सिद्ध हुआ? क्योंकि वे एकत्व, पथक्त्व निविषयक हैं. अर्थात जीवानि सर्वथा एकत्व तो प्रत्यक्ष से बाधित है और पृथक्त्व तो सत् आदिरूप से बाधित है अतएव ये दोनों विषय रहित शन्यरूप हैं। इस प्रकार से बौद्ध की शंका के होने पर श्रीस्वामी समंतभद्राचार्यवर्य उन दोनों को सविषयत्व बतलाने की इच्छा रखते हुये कहते हैं सत् सामान्य अपेक्षा जग में, सभी वस्तुयें एकस्वरूप । द्रव्य तथा गुणपर्यय से सब, वस्तु पृथक् हैं भेदस्वरूप ।। यथा असाधारण हेतू भी, भेदाभेद विवक्षा से । है अनेक अरू एक उसी विधि, सब कुछ एक अनेक रहें ॥३४॥ कारिकार्थ-भेद और अभेद की विवक्षा में असाधारण हेतु की तरह सत्सामान्य की अपेक्षा से सभी जीवादि वस्तुओं में एकत्व है एवं द्रव्यादि के भेद की अपेक्षा पृथक्त्व भी है ॥३४॥ तु शब्द विशेषण अर्थ में है। इससे सत्सामान्यरूप विशेषण का आश्रय लेकर सभी जीवादि वस्तुओं में एकत्व सिद्ध है इसलिये एकत्व ज्ञान निविषयक नहीं है क्योंकि वह एकत्व सत्सामान्य को 1 तस्यैकत्वप्रत्ययस्य पृथक्त्वप्रत्ययस्य च निविषयत्वादवस्तुत्वात् इति शंकायां सत्यां तस्य पृथक्त्वेकत्वप्रत्ययस्य वस्तुत्वं प्रदर्शयितु मनसः श्रीसमन्तभद्राः कारिका ब्रुवन्ति । दि० प्र०। 2 आशंकायां सत्याम् 3 सामान्यमेवहेतुः हेतुविशेषणं सदिति सत्सामान्यं विशेषणमाश्रित्य । दि० प्र०। 4 विशेष । दि० प्र० । 5 सर्व जीवादिद्रव्यम् । दि० प्र० । 6 गुणादिपदार्थभेदमाश्रित्य । दि० प्र०। 27 यथा पक्षधर्मत्वादिभ्योऽभेदविवक्षया हेतोरेकानेकत्वम् । तथा जीवादो सामान्यविशेषापेक्षया एकानेकत्वं ज्ञातव्यम् । दि० प्र०। 8 हेतुशब्देनानुमानावयव. भूतो हेतु ह्यः । अथवार्थ क्रियानिष्पादकघटादिलक्षणार्थोपि तेन ग्राह्य इत्युक्ते विशेषरूपो ज्ञापकः । कारको वा हेतुस्तत्र ज्ञापकोऽस्यादे—मादि: कारको घटादेमृत्पिण्डादिः । दि० प्र०। 9 निविशेषणे इति पा० । दि० प्र० । 10 वस्त्वपेक्षया यत्सामान्यं विशेषणम् । केन निविशेषणत्वेन विशेषणे विशेषणाभावो निविशेषण तस्य भावस्तेन विशेषणमाश्रित्य जीवादिद्रव्याणां सर्वेषामेकत्वप्रत्ययो निविषयो न । सविषय एव । तस्य एकत्वप्रत्ययस्य सत्तासामान्यगोचरत्वात् । दि० प्र०। 11 सामान्यमेव हेतुविशेषणं सदिति । दि० प्र० । 12 जीवादिः धर्मिणो विशेषणम् । दि० प्र०। 13 मिणाम् । ब्या० प्र०। 14 साध्यम् । दि० प्र० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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