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________________ ( १४ ) संस्थान का जन्म : पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान का जन्म सन् १९७२ में हुआ। इस संस्थान का रजिस्ट्रेशन दिल्ली सोसायटी एक्ट के अन्तर्गत सन् १९७२ में ही करा लिया गया। संस्थान की कार्यकारिणी : संस्थान के नियमानुसार प्रत्येक तीन वर्ष में संस्थान की कार्यकारिणी का गठन पू० माताजी की आज्ञा से होता आ रहा है। डा० कैलाशचन्द जैन (राजा टायज)-दिल्ली संस्थान के सर्वप्रथम अध्यक्ष मनोनीत किये गये थे। महामन्त्री श्री वैद्यराज शांतिप्रसाद जैन-दिल्ली. कोषाध्यक्ष ब्र० श्री मोतीचन्द जैन, मन्त्री श्री कैलाशचन्द जैन, करोलबाग-नई दिल्ली, एवं उपमन्त्री ब्र० रवीन्द्र कुमार जैन आदि पदाधिकारी मनोनीत किये गये थे। उसके बाद संस्थान के अध्यक्ष पद पर श्री मदनलाल जी चांदवाड़, रामगंज मंडी (राजस्थान) ६ वर्ष तक रहे, पश्चात् ६ वर्ष तक श्री अमरचन्द जी पहाड़िया, कलकत्ता संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहे । महामन्त्री स्व० श्री कैलाशचन्द जैन, सरधना (उ० प्र०) तथा उनके बाद गणेशीलाल जी रानीवाला (कोटा) को मह मनोनीत किया गया। वर्तमान त्रिवर्षीय कार्यकारिणी में लगभग ६० सदस्य सारे भारतवर्ष से मनोनीत हैं, जिसमें श्री अमरचन्द जी पहाडिया व श्री निर्मल कुमार जी सेठी संरक्षक पद पर, ब्र० श्री रवीन्द्रकुमार जैन, (में) हस्तिनापुर अध्यक्ष, श्री जिनेन्द्रप्रसाद जैन ठेकेदार, दिल्ली-कोषाध्यक्ष, श्री गणेशीलाल रानीवाला, कोटा - महामंत्री एवं मनोज कुमार जैन, हस्तिनापुर-मन्त्री तथा कैलाशचन्द जैन, (करोलबाग) नई दिल्ली-कोषाध्यक्ष पद पर मनोनीत हैं। हिसाब एवं धन की व्यवस्था : संस्थान का आय-व्यय प्रतिवर्ष आडिटर से आडिट कराया जाता है एवं कार्यकारिणी की बैठक में हिसाब पास किया जाता है। धन के सम्बन्ध में संस्थान की सम्पूर्ण आय रसीद अथवा कूपन से प्राप्त होती है तथा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, हस्तिनापुर, न्यू बैंक ऑफ इण्डिया, हस्तिनापुर एवं बैंक ऑफ बड़ौदा, दिल्ली में संस्थान के नाम से खाते हैं, जिसका संगलन संस्थान के अध्यक्ष, कार्याध्यक्ष, कोषाध्यक्ष एवं मन्त्री उपरोक्त चार में से किन्हीं दो हस्ताक्षरों से होता है। निर्माण : __ सन् १९७४ में जम्बूद्वीप स्थल पर निर्माण कार्य का शुभारम्भ हुआ था। भगवान महावीर की सातिशय मूर्ति की स्थापना, कार्यालय का निर्माण आदि के साथ ही जम्बूद्वीप रचना के निर्माण की शृंखला में सर्वप्रथम ८४ फुट ऊंचे सुमेरु का निर्माण प्रारम्भ किया गया । सन् १९७६ में सुमेरु की रचना पूर्ण होने के उपरान्त जम्बूद्वीप के ६ पर्वतों, ६ खण्डों, कुलाचलों, नदियों, देवभक्नों, जिनमन्दिरों, जम्बू एवं शाल्मलि के अकृत्रिम वृक्षों की रचना की गई। लवण समुद्र में सतत् प्रवाह मान जलराशि, विद्युत उपकरणों द्वारा की गई अद्वित्तीय प्रकाश व्यवस्था तथा ४०-५० फुट ऊंचे फौव्वारों के मध्य जम्बूद्वीप की रचना सजीव हो उठती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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