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________________ * सम्पादकीय * -ब. रवीन्द्र कुमार जैन देवागमनभोयान चामरादि विभूतयः । मायाविष्वषि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ अष्टसहस्रों की विषय वस्तु संस्कृत भाषा एवं सूत्रात्मक शैली में निबद्ध जैन धर्म की सर्वाधिक प्राचीन कृति तत्त्वार्थ सूत्र के आदि में मा० श्री उमास्वामी द्वारा रचित मंगलाचरण को आधार बनाकर आ० श्री समन्तभद्र ने माप्तमीमांसा (देवागम स्तोत्र) की रचना की थी। इसी आप्त मीमांसा शीर्षक स्तोत्र पर आ० श्री अकलंकदेव ने अष्टशती (भाष्य) की रचना की। न्याय के प्रकांड विद्वान आचार्य श्री अकलंकदेव का यह भाष्य आचार्यश्री की ताकिक एवं नैयायिक दष्टि तथा ग्रन्थ में गम्फित षड़ दर्शनों की सामग्री के कारण यह ग्रन्थ भाष्य होने के बावजद अत्यन्त क्लिष्ट रहा । ग्रन्थ की जटिलता का अनुमान कर आ० श्री अकलंकदेव की परम्परा में ही आ. श्री विद्यानन्द जी ने अष्टसहस्री नामक टीका की रचना की थी। जैन दर्शन के अद्यतन उपलब्ध न्याय विषयक ग्रन्थों में यह ग्रन्थ सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। किन्तु विषय की गम्भीरता के कारण यह टीका ग्रन्थ भी पाठकों के लिये सहज गम्य नहीं हो पाया। विद्वतजनों में चिरकाल से प्रचलित इसका सम्बोधन अष्टसहस्री उपयुक्त ही है। प्रस्तुत टीका ग्रन्थ 'स्यावाद चिंतामणि' शीर्षक से पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा रचित इस टीका में माताजी ने आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी की मूल कारिकाओं, अष्टशती भाष्य एवं अष्टसहस्री टीका को व्यवस्थित करने के साथ ही अष्टसहस्री एवं मष्टशती की हिन्दी व्याख्या प्रस्तुत कर इस ग्रंथ को सहज एवं बोधगम्य बना दिया है । परिशिष्ट में ग्रंथ में उद्धृत श्लोकों को सूचीबद्ध करने एवं सुविधानुसार शीर्षकों का सृजन करने से ग्रंथ की भाषा एवं शैली में प्रवाह आ गया है, तथा दुरुहता घटी है। संस्थान का परिचय जिस संस्थान द्वारा उपरोक्त ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है, उसकी संक्षिप्त जानकारी पाठकों को देना मैं आवश्यक समझता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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