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बौद्धाभिमत पृथक्त्व एकांत का खण्डन ]
तृतीय भाग
[ ४६
परिशेषात्' संभाव्यते । सा 'चैकद्रव्यतादात्म्यलक्षणत्वात्प्रत्यासत्तिविशेषः । इति कथंचिदैक्यमेवैकत्वव्यवहारनिबन्धनं चित्रज्ञानस्य, अन्यथा वेद्यवेदकाकारयोरपि पृथक्त्वैकान्तप्रसङ्गात् । तयोः स्वभावभेदेपि 'सहोपलम्भनियमात्कथंचिदभेदाभ्युपगमे कथमेकसंतानसंविदा समनन्तरोपलम्भनियमात्कथंचिदैक्यं न स्थात् ? कालसमनन्तरोपलम्भनियमादेकसंतानत्वमेव स्याद्देशसमनन्तरोपलम्भनियमात् समुदायवत्, न पुनरेकद्रव्यत्वमिति' चेन्न, भवतां बुद्धतरसंविदामेकसंतानत्वापत्ते: , कालसमनन्तरोपलम्भनियमस्य भावात् पञ्चानामपि च स्कन्धानामेकस्कन्धत्वप्रसङ्गात्', प्रदेशसमनन्तरोपलम्भनियमस्य भावात् । प्रत्यासत्त्यन्तरकल्पनायां तत्र यया प्रत्यासत्या संतानः समुदायश्च, तयैव कथंचिदैक्यमस्तु । न हि तादृशां
कथंचित् ऐक्य (तादात्म्य) कैसे नहीं होगा ?" अर्थात् चित्रज्ञान में कथंचित् तादात्म्य माने बिना "यह चित्रज्ञान एक है" ऐसा एकत्व व्यवहार असंभव है।
बौद्ध – वर्तमान कालरूप समनंतर की उपलब्धि के नियम से चित्रज्ञान क्षणों में एक संतानत्व ही है । जैसे कि देश समनंतर की उपलब्धि के नियम से समुदाय में एक संतानत्व सिद्ध है किन्तु उन चित्रज्ञान क्षणों में एक द्रव्यत्व नहीं है अर्थात् आप जैन चित्रज्ञान में द्रव्यत्व की अपेक्षा एकत्व सिद्ध करते हैं सो हम मानने को तैयार नहीं है।
जैन-ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि आप बौद्धों के यहाँ बुद्ध और बौद्धों के ज्ञान क्षणों में एक संतान की आपत्ति आ जायेगी पुनः काल समनंतर (काल की समीपता) की उपलब्धि का नियम होने से रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार रूप पांचों ही स्कंधों में एक स्कंधत्व का प्रसंग हो जायेगा क्योंकि उनमें प्रदेश समनंतर (सामीप्य ) की उपलब्धि का नियम पाया जाता है अर्थात् वे पांचों स्कंध पृथक्-पृथक् लक्षण वाले हैं यथा-रूप, रस, गंध और स्पर्श परमाणु रूपस्कंध हैं जो कि सजातीय-विजातीय से व्यावृत्त एवं परस्पर में असंबद्धरूप है।
सुख दुःख आदि वेदना स्कंध हैं। सविकल्प निर्विकल्पज्ञान विज्ञान स्कंध हैं। नामकरण संज्ञा स्कंध है । ज्ञान और पुण्य-पाप की वासना संस्कार स्कंध हैं। इन सभी का लक्षण भिन्न होने पर भी प्रदेश की समीपता पाई जाती है, अतएव ये पांचों ही स्कंध एक स्कंधरूप हो जावेंगे यह दूषण आ जायेगा । यदि आप भिन्न प्रत्यासत्ति की कल्पना करें तब तो "उन ज्ञान के पूर्वोत्तर क्षणों में और एक देशवर्ती परमाणु एवं स्कंधों में जिस प्रत्यासत्ति से संतान और समुदाय होते हैं उसी प्रत्यासत्ति से 1 जैन: उद्धरितात् द्रव्यप्रत्यासत्तिरेव चित्रज्ञाने कथञ्चिदैक्यं निश्चीयते । दि० प्र० । 2 पूर्वोत्तरक्षणयोः कथञ्चिदैः क्यम् । दि० प्र०। 3 एकत्वव्यवहारः । दि० प्र० । 4 युगपतदर्शनात् । दि० प्र० । 5 कालेन प्रत्यासत्त्यासमनन्तरस्योपलंभनियमस्तस्मात् । ब्या० प्र०। 6 वर्तमानलक्षणात् । दि० प्र० । 7 एकद्रव्यत्वमेकसन्तानत्वम् न । दि० प्र० । 8 सामीप्य । दि० प्र०। १ एकः । दि० प्र० । कुतः । ब्या० प्र०। 10 सन्तानस्य समुदायस्व च । दि० प्र० ।
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