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________________ अभाव एकांत का खंडन 1 प्रथम परिच्छेद [ ३३७ [ हेतौ त्रिलक्षणाभावेऽपि साध्यसिद्धिप्रकारं दर्शयन्ति ] 'सपक्षसत्त्वाभावेपि साध्याभावासंभूष्णुतानियमनिर्णयकलक्षणमात्रादेव साधनस्य साध्यसिद्धौ समर्थनत्वोपपत्तेः', सपक्षसत्त्वस्याभावेपि' सर्वानित्यत्वे साध्ये सत्त्वादेः साधनस्योपगमात्, स्वयमसिद्धधर्मिधर्मस्यापक्षधर्मत्वेपि प्रमाणास्तित्वे चेष्टसाधनस्य हेतोः समर्थनात, [ हेतु में तीनरूप के बिना भी साध्य की सिद्धि के प्रकार को दिखलाते हैं ] इस प्रयोग में सपक्षसत्त्व का अभाव होने पर भी साध्य के अभाव में न होना ही नियम निर्णयरूप एकलक्षणमात्र अर्थात् अन्यथानुपपत्तिलक्षण मात्र से ही साध्य की सिद्धि में हेतु को समर्थनपना बन जाता है, क्योंकि सपक्ष में सत्त्व का अभाव होने पर भी “सर्वमनित्यं" साध्य में सत्त्वादि हेतु बौद्धों के द्वारा भी स्वीकार किये गये हैं। अर्थात् “सभी पदार्थ अनित्य हैं क्योंकि सत्रूप हैं" इस प्रकार से सभी पदार्थों को अनित्य सिद्ध करने में सत्त्व आदि हेतु पाये जाते हैं। स्वयं असिद्ध धर्मी के धर्म का पक्षधर्म से रहितपना होने पर भी प्रमाण का अस्तित्व स्वीकार करने पर इष्ट साधनरूप हेतु का समर्थन हो ही जाता है । ___ अर्थात्-किसी ने शून्यवादी बौद्ध से पूछा कि-हे सौगत ! तुम्हारे मत में प्रमाणता है या नहीं ? उत्तर में बौद्ध ने कहा कि "प्रमाणास्तित्वमस्ति इष्टसाधनात्" प्रमाण का अस्तित्व है क्योंकि इष्ट का साधन पाया जाता है। उस पर स्याद्वादी कहते हैं कि यहाँ स्वरूप से असिद्ध धर्मी का धर्म जो इष्ट साधनरूप हेतु है उसमें पक्षधर्म से रहित प्रमाण का अस्तित्व सिद्ध करने पर आप समर्थन को स्वीकार करते हैं, इसलिये उस हेतु में पक्ष धर्मत्व का अभाव है, क्योंकि प्रमाण धर्मी है और यदि धर्मी का धर्म असिद्ध है, तब उसका धर्म इष्टसाधन हो नहीं सकता है, क्योंकि संवेदनाद्वैत की अपेक्षा तो प्रमाण का ही अभाव है। 1 सर्वस्य पक्षीकृतत्वात् भावः । (दि० प्र०) 2 आह स्या. हे सौगत ! हेतोस्त्रिलक्षणवादिन सौगत सपक्षसत्वाभावेपि साध्याभावासंभवनियमनिर्णयलक्षणमात्रादेव साधनस्य स्वसाध्यसिद्धौ समर्थनत्वमभ्युपगम्यते यथास्माभिः स्याद्वादिभिः तथा भवतापि सपक्षत्वाभावेपि स्वसाध्यसिद्धी साधनस्य समर्थनत्वमभ्युपगम्यते कथमित्याह । सर्व पक्षः क्षणिक भवतीति साध्यो धर्मः सत्त्वात् । यथा किमिति सपक्षसत्त्वाभावे दृष्टान्तो नास्ति । पुनः केनापि पृष्टः हे सौगत ! तव मते प्रमाणास्तित्वमिष्टसाधनात् । स्था० इत्यत्र स्वरूपेणासिद्धमिधर्मस्येष्टसाधनस्य हेतोः पक्षधर्मत्वरहिते प्रमाणास्तित्वे साध्ये समनर्थत्वमभ्युपगम्यते भवता इति पक्षधर्मत्वाभावः । (दि० प्र०) 3 अस्माकं स्याद्वादिनाम् । (दि० प्र०) 4 सर्वस्य पक्षीकृतत्वात् । च । (दि० प्र०) 5 सन्ति प्रमाणानि स्वेष्टानिष्टसाधनदूषणान्यथानुपपत्तेः । (दि० प्र०) 6 च । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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