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कार्य को करने वाली पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी जैसी परम विदुषी आर्यिका विद्यमान हैं जिनके कि हमें साक्षात् दर्शन हो रहे हैं।
पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने तो माताजी के साहित्य का अवलोकन करते हुए अत्यन्त गद्गद होकर कहा कि "ज्ञानमती माताजी तो सरस्वती की अवतार हैं।"
पं० दरबारीलाल जी कोठिया जो कि न्यायदर्शन के उत्कृष्ट विद्वान् हैं हस्तिनापुर आये तो माताजी ने वात्सल्य भाव से उन्हें कहा कि आप तो सरस्वती पुत्र हैं तो उन्होंने कहा- "माताजी! आप तो साक्षात् ही सरस्वती हैं ऐसा कहते हुए उन्होंने अनेकशः माताजी की प्रशंसा की।
पं० कैलाशचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री ने अष्टसहस्री का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित करने के लिये अत्यधिक आग्रह किया था किन्तु दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के अन्तर्गत स्थापित वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला का यह प्रथम भाग पहला पुष्प था इसलिये ज्ञानपीठ से प्रकाशन कराने की भावना नहीं बनी। टिप्पण संकलन--
__ अष्टसहस्री प्रथम भाग में मुद्रित प्रति के टिप्पण तो सभी रखे ही गये हैं साथ ही ब्यावर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति से एवं दिल्ली से प्राप्त हस्तलिखित प्रति से लिये गये प्रमुख टिप्पण भी दिये गये हैं ।
ब्यावर प्रति से ब्र० रवीन्द्रकुमार, अ. मालती एवं ब्र० माधरी आदि से माताजी ने टिप्पण निकलवाए थे। बाद में उनमें से प्रमुख टिप्पण स्वयं माताजी ने छांटकर निकालने में अत्यधिक परिश्रम किया था। इस प्रथम भाग का द्वितीय संस्करण
इस अष्टसहस्री प्रथम भाग के प्रकाशन के बाद से एक-एक करके १७ पुष्पों का प्रकाशन हो गया। १५
| इसके दूसरे भाग का प्रकाशन हआ। प्रथम भाग के समाप्त हो जाने से पूनः इसके द्वितीय संस्करण के प्रकाशन की आवश्यकता प्रतीत हुई। यह लिखते हुए प्रसन्नता हो रही है कि प्रथम भाग का द्वितीय संस्करण आपके हाथों में है।
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