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चार्वाकमत निरास 1
प्रथम परिच्छेद
[ ३५७
[ चार्वाकः संसारतत्त्वं न मन्यते तस्य विचारः ] तथा संसारतत्त्वमपि न प्रसिद्धेन बाध्यते, प्रत्यक्षतः संसाराभावासिद्धेस्तस्य तद्बाधकत्वाघटनात् । स्वोपात्तकर्मवशादात्मनो भवान्तरावाप्तिः संसारः । स न प्रत्यक्षविषयो येन प्रत्यक्षं तं बाधेत ।
[ चार्वाकः संसारतत्त्वं निराकरोति तस्य समाधानं ] 'अनुमानं तद्बाधकमिति चेन्न, तदभावप्रतिबद्धलिङ्गाभावाद। गर्भादिमरणपर्यन्तचैतन्यविशिष्ट कायात्मनः पुरुषस्य जन्मनः पूर्वं मरणाच्चोत्तरं नास्ति भवान्तरम्, 10अनुपलब्धेः
कारणभूत तत्त्वों में बाधा का अभाव है एवं अनुमान से भी बाधा नहीं आती है इसलिए अनुमान से भी मोक्ष कारण सहित सिद्ध है। "मोक्ष सकारणक है अर्थात् सम्यग्दर्शनादि कारण से होता है क्योंकि प्रतिनियत कालादि की अपेक्षा पायी जाती है अर्थात्-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव एवं तीर्थादि सामग्री के बिना मोक्ष नहीं होता है इसीलिए कारण सहित है जैसे पट आदिक।" यदि मोक्ष को अकारणक मानोगे तो सर्वदा, सर्वत्र सभी जीवों के मोक्ष का प्रसंग आ जावेगा क्योंकि अकारणक होने से मोक्ष पर की अपेक्षा से रहित ही रहेगा। और आगम से भी मोक्ष के कारणभूत तत्त्वों में बाधा नहीं है, क्योंकि मोक्ष के कारण को सिद्ध करने वाला आगम पाया जाता है। "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" इस प्रकार सूत्र वचन है ।
[ संसार तत्त्व पर विचार ] संसार तत्त्व भी प्रसिद्ध प्रमाण से बाधित नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष से संसार के अभाव की असिद्धि है । वह प्रत्यक्ष संसार को बाधित नहीं करता है अपने द्वारा उपार्जित कर्म के निमित्त से आत्मा के भवांतर की प्राप्ति का होना इसीका नाम संसार है। वह संसार प्रत्यक्ष का विषय नहीं है कि जिससे वह प्रत्यक्ष उस संसार को बाधित कर सके।
अर्थात् कर्म के निमित्त से कार्माण तेजस शरीर के साथ आत्मा का जो परलोक में गमन है वह किसी को प्रत्यक्ष से दिखता नहीं है; और जो चीज प्रत्यक्ष से दिखती नहीं है यह प्रत्यक्ष प्रमाण उसका निषेध भी कैसे कर सकेगा।
[चार्वाक के द्वारा संसार तत्त्व का खण्डन एवं जैनाचार्य द्वारा उसका समाधान ] चार्वाक-अनुमान प्रमाण संसार का बाधक है।
जैनाचार्य-यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि संसार के अभाव के साथ प्रतिबद्ध (अविनाभावी) लिंग का अभाव है अतः अनुमान प्रमाण से बाधा नहीं आ सकती।
1 प्रत्यक्षस्य। 2 संसारः। (ब्या० प्र०) 3 प्रत्यक्षाविषयत्वादेवाभाव इति न व्यक्तं देशांतरकालांतरवर्तिवहस्पत्त्यादेरप्यभावप्रसंगात् । दि. प्र.। 4 चार्वाकः । 5 संसाराभावेन सह प्रतिबद्धस्य लिङ्गस्याभावात् । 6 संसाराभावाविनाभाविलिंगाभावात् दि. प्र.। 7 चार्वाकः । 8 सहित । (ब्या० प्र०) 9 का । (ब्या० प्र०) 10 चैतन्य विशिष्ट: काय एवात्मा, तस्य ।
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