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सर्वज्ञसिद्धि ] प्रथम परिच्छेद
[ ३४१ याणि दृष्टानि नाप्रतिनियतसकल'रूपादि विषयाणि 'तथोपलब्धिलक्षणप्राप्तानि महत्त्वोपेतानि पृथिव्यादिद्रव्याणि तत्समवेतरूपादीनि चक्षुरादीन्द्रियगोचरतया प्रसिद्धानि, न पुनः परमाण्वादीनि । 'समाधिविशेषोत्थधर्ममाहात्म्याद् दृष्टातिक्रमेण परमाण्वादिषु चक्षुरादीनि प्रवर्तन्ते न पुना रसादिष्वेकमिन्द्रियम्, इति न किञ्चिद्विशेषव्यवस्थानिबन्धनमन्यत्र जाड्यात् । 'एतेन परम्परया परमाणुरूपादिजिन्द्रियसम्बन्धः प्रतिध्वस्तः, संयोगाभावे संयुक्तसमवायादीनामसंभवात् श्रोत्रे सकलशब्दस मयावासंभवे शब्दत्वेन समवेतसमवायासंभववत् ।
[ मानसप्रत्यक्षेणापि सूक्ष्मादिपदार्थस्य ज्ञानं न भवति ] 1°यदि पुनरेकमेवान्तःकरणं योगजधर्मानुगृहीतं युगपत्सकलसूक्ष्माद्यर्थविषयमिष्यते।
इसलिये ऐसा नहीं हो सकता है।
मीमांसक-तो फिर परमाणु आदि में भी इन्द्रियों की प्रवृत्ति का प्रत्यक्ष से ही विरोध तुल्य है क्योंकि जिस प्रकार से चक्षु आदि इन्द्रियाँ अपने-अपने प्रतिनियत रूपादि पदार्थों को विषय करते हुये देखी जाती हैं, किंतु अप्रतिनियत सकल परमाणु आदि पदार्थ तथा रूप रस आदि विषयों को ग्रहण नहीं कर सकती हैं। उसी प्रकार से उपलब्धि लक्षण प्राप्त जो चक्षु आदि इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं; तथा महत्व आदि गुणों से सहित ऐसे जो पृथ्वी आदि द्रव्य हैं एवं उन द्रव्यों में समवेत रूप से रहने वाले जो रूपादि गुण हैं ये सभी पदार्थ चक्षु आदि इन्द्रियों के विषयभूत प्रसिद्ध हैं । फिर भी परमाणु आदि पदार्थ चक्षु आदि इन्द्रियों के गोचर नहीं हैं ऐसा प्रत्यक्ष से सिद्ध है।
नैयायिक-समाधि विशेष से उत्पन्न होने वाले धर्म के माहात्म्य से प्रत्यक्ष का भी उल्लंघन करके चक्षु आदि इन्द्रियाँ परमाणु आदि विषयों में प्रवृत्ति करती हैं अर्थात् जान लेती हैं परन्तु एक ही इन्द्रिय रस गन्ध आदि सभी विषयों को ग्रहण नहीं कर सकती है।
मीमांसक-चक्षु इन्द्रिय और परमाणु के संयोग सन्निकर्ष का अभाव होने पर भी आप नैयायिक का जो यह कथन है उस कथन में मूर्खता के अतिरिक्त विशेष व्यवस्था का कारण हमें कुछ भी नहीं दिखता है। इसी कथन से “परम्परा से परमाणु रूप आदि में इन्द्रियों का सम्बन्ध होता है" इत्यादि मान्यता का भी खंडन हो गया समझना चाहिये । क्योंकि संयोग के अभाव में संयुक्त समवाय, संयुक्त समवेत समवाय आदि भी संभव नहीं है । जिस प्रकार से श्रोत्र इन्द्रिय में संपूर्ण शब्दों का समवाय असंभव है तब शब्दत्व रूप से समवेत समवाय भी असंभव ही है।
1 सकलपदेन परमाणुरूपं गृह्यते । 2 आदिपदेन रसादिग्रहः । 3 ज्ञेयस्वरूप । (ब्या० प्र०) 4 योगजधर्मानुग्रहोत्थधर्मातिशयात् प्रत्यक्षोल्लङ्घनेन । 5 चक्षुरिन्द्रियपरमाण्वोः संयोगसन्निकर्षाभावे। 6 दरांतरितसूक्ष्मार्थेष्विंद्रियप्रवृत्तौ। (ब्या० प्र०) 7 संयोगलक्षणसाक्षात्सम्बन्धनिराकरणेन । 8 आदिशब्देन रसरसत्वादयो ग्राह्याः । 9 आदिपदेन संयुक्तसमवेतसमवायादिह्यः । 10 भो नैयायिक । 11 तव नैयायिकस्य ।
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