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________________ सर्वज्ञसिद्धि ] प्रथम परिच्छेद [ सूक्ष्मादिपदार्था इंद्रियप्रत्यक्षेण कस्यचित् प्रत्यक्षाः संति मानसप्रत्यक्षेण वा ? ] ननु सूक्ष्मादयोर्थाः किमिन्द्रियप्रत्यक्षेण कस्यचित्प्रत्यक्षाः साध्या उतातीन्द्रियप्रत्यक्षेण ? प्रथमविकल्पेऽनुमानविरुद्ध पक्षः 'सूक्ष्माद्यर्था' न कस्यचिदिन्द्रियज्ञानविषयाः, सर्वथेन्द्रियसम्बन्धरहितत्वात् । 'ये तु कस्यचिदिन्द्रियज्ञानविषयास्ते न सर्वथेन्द्रियसम्बन्धरहिता दृष्टाः । यथा घटादयः । सर्वथेन्द्रियसम्बन्धरहिताश्च सूक्ष्माद्यस्तिस्मान्न कस्यचिदिन्द्रियज्ञानविषयाः' इति केवलव्यतिरेकिणानुमानेन बाध्यमानत्वात् । न च सर्वथेन्द्रियसम्बन्ध रहितत्वमसिद्धं, साक्षात्परमाणु धर्मादीनामिन्द्रियसम्बन्धाभावात् । तथा हि । न कस्यचिदिन्द्रियं साक्षात्परमाण्वादिभिः10 सम्बध्यते, इन्द्रियत्वादस्मदादीन्द्रियवत् । [ सूक्ष्मादि पदार्थ इन्द्रिय प्रत्यक्ष से किसी के प्रत्यक्ष हैं या नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष से ? ] मीमांसक-अच्छा तो सूक्ष्मादि पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं यह बात तो हम मानने को तैयार हैं किन्तु यह तो बतलाइये कि वे सूक्ष्मादि पदार्थ इंद्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान से किसी के प्रत्यक्ष हैं या अतींद्रिय (मानस) प्रत्यक्ष ज्ञान से ? प्रथम विकल्प स्वीकार करने पर तो पक्ष अनुमान के विरुद्ध है । तथाहि "सूक्ष्मादि पदार्थ किसी भी जीव के इंद्रिय ज्ञान के विषय नहीं हैं क्योंकि सर्वथा इंद्रियों के सम्बन्ध से रहित हैं । जो पदार्थ किसी के इन्द्रिय ज्ञान के विषय हैं वे पदार्थ सर्वथा इन्द्रिय के सम्बन्ध से रहित नहीं देखे जाते हैं जैसे घट पट आदि । सर्वथा इंद्रिय सम्बन्ध से रहित सूक्ष्मादि पदार्थ हैं इसलिये वे किसी के इन्द्रिय ज्ञान के विषय भी नहीं हैं.।" इस प्रकार केवलव्यतिरेकी अनुमान के द्वारा आपका पक्ष बाधित हो जाता है । एवं यह सर्वथा "इन्द्रियसम्बन्ध रहितत्व" हेतु असिद्ध भी नहीं है । साक्षात् परमाणु धर्म, अधर्म आदि के साथ इन्द्रिय सम्बन्ध का अभाव है। तथाहि __ "किसी की भी इन्द्रियां साक्षात् परमाणु आदि से सम्बन्धित नहीं होती हैं क्योंकि वे इद्रिन्याँ हैं जैसे कि हम लोगों की इन्द्रियाँ" । इस अनुमान से इंद्रियों से परमाणु आदि का ज्ञान होना असंभव है। [ नैयायिक कहता है कि योगज धर्म से अनुगृहीत इन्द्रियाँ परमाणु आदि को भी देख लेती हैं उसका निराकरण ] नैयायिक–योगज धर्म अनुगृहीत इन्द्रियाँ उन परमाणु आदि से साक्षात् सम्बन्ध कर लेती हैं। अतः उन सूक्ष्म वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। मीमांसक-इंद्रियों के योगज धर्म का अनुग्रह होना यह क्या चीज है ? 1 मीमांसको नैयायिकं प्रत्याह। 2 अतीन्द्रियं =मनः। 3 कालात्ययापदिष्टः । प्रमाणबाधिते पक्षे हेतोर्वर्तमानत्वं कालात्ययापदिष्टत्वम् । 4 अनुमानविरुद्धत्वं दर्शयति । 5 साक्षात् परम्परया वा। 6 सूक्ष्माद्यर्थानाम् । 7 व्यतिरेकव्याप्तिः । 8 साधनम् । १ परमाणवश्च धर्मादयश्चेति तेषाम् । 10 आदिशब्देन स्वभाव विप्रकृष्टैर्धर्मादिभिः कालांतरितैरतीनागतपदार्थंदूराहिमवदादिभिः । (ब्या० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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