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अष्टसहस्री
[ कारिका ५
इति । तदप्यसम्यक्, तत' एव कस्यचित्सूक्ष्माद्यर्थसाक्षात्कारित्वसिद्धेः । सूक्ष्माद्यर्थाः कस्यचित्प्रत्यक्षाः प्रमेयत्वात्सत्त्वाद्वस्तुत्वाद्वा स्फटिकादिवत् । 'अनुमेयेनात्यन्तपरोक्षेण चार्थेन व्यभिचार इति चेन्न, 'तस्य पक्षीकरणात् । तदेवं प्रमेयत्वसत्त्वादिर्यत्र हेतुलक्षणं पुष्णाति 10तं कथं "चेतनः प्रतिषेद्धमर्हति संशयितुं वा* 12सूक्ष्माद्यर्थसाक्षात्कारिणस्तस्यैवा4 सुनिश्चितासंभवबाधकत्वादस्तित्वसिद्धेरबाधितविषयत्वस्यापि'5 16परोपगतहेतुलक्षणस्य "प्रकृतहेतोः पोषणात्।।
की कल्पना करेगा? अर्थात् कोई भी नहीं करेगा।
जैन-यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि इन्हीं प्रमेयत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व आदि हेतुओं द्वारा ही किसी न किसी के सूक्ष्मादि पदार्थों का साक्षात्कारित्व सिद्ध हो जाता है । तथाहि "सूक्ष्मादि पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि वे प्रमेय रूप हैं, अस्तित्व रूप हैं अथवा वस्तुत्व रूप हैं। जैसे-स्फटिक आदि पदार्थ ।"
___ शंका-अनुमान मात्र से जानने योग्य और आगम से जानने योग्य अत्यन्त परोक्ष पदार्थों के साथ व्यभिचारी दोष आता है।
समाधान नहीं आता है क्योंकि इन सभी अनुमान गम्य और अत्यन्त परोक्ष आगम गम्य पदार्थों को भी हमने पक्ष में ले लिया है अतः विपक्ष के न होने से व्यभिचार दोष को अवकाश ही नहीं है कारण कि अनुमान गम्य, अनुमेय एवं आगम अत्यन्त परोक्ष पदार्थ भी प्रमेय हैं, अस्तिरूप तथा वस्तुरूप हैं यह बात निश्चित है।
जब इस प्रकार से प्रमेयत्व सत्त्व आदि हेतु सर्वज्ञ को सिद्ध करने में "सुनिश्चित रूप से असंभव है बाधक प्रमाण जिसमें' ऐसे हेतु के लक्षण को पुष्ट करते हैं तब कोई भी बुद्धिमान चेतन आत्मा इन्हीं हेतुओं द्वारा उस सर्वज्ञ का निषेध करने में या उसके सद्भाव में संशय करने के लिये समर्थ कैसे हो सकता है ?* अर्थात् इन्हीं हेतुओं से तो सर्वज्ञ का अस्तित्त्व सिद्ध हो रहा है पुनः
1 प्रमेयत्वादितः। 2 अनुमानमात्रगम्येन । 3 मीमांसक आह हे स्याद्वादिन् । प्रमेयत्वादिति हेतोः अनुमेयेनात्यंत परोक्षेणार्थेन कृत्वा व्यभिचारो दृश्यते इति चेन्न तस्यानुमेयस्यात्यंतंपरोक्षार्थस्य पक्षीकरणात् । सूक्ष्माद्यर्था इति पक्षः कृतस्तत्रैवांतर्भावात् अतोहेतु र्व्यभिचारी न । दि. प्र.। 4 आगमगम्येन। 5 अनुमेयस्यात्यन्तपरोक्षस्य च । 6 कस्यचित्सूक्ष्माद्यर्थसाक्षात्कारित्वसिद्धिः प्रमेयत्वसत्त्वादेर्यतः। (ब्या० प्र०) 7 उक्तप्रकारेण । (ब्या० प्र०) 8 सर्वज्ञे साध्ये। 9 सुनिश्चितासंभवदबाधकत्वस्य लक्षणं स्वरूपम् । अथवानुमेयत्वस्य लक्षणमबाधितविषयत्वम् । 10 सर्वज्ञम् । 11 मतिमान् । 12 नुः । (ब्या० प्र०) 13 प्रमेयत्वादेः साधनस्याबाधकत्वप्रकारेण । (ब्या० प्र०) 14 पुरुषस्य प्रतिषेधकस्य संशयितस्य वा। 15 सूक्ष्माद्यर्थे पक्षे । (ब्या० प्र०) 16 परेण मीमांसकेनाभ्युपगतः प्रमेयत्वादिहेतुः सर्वज्ञास्तित्वे अबाधितविषयः सन् सुनिश्चितासंभवदित्यादिप्रकृतहेतु पुष्णाति । 17 अनुमेयत्व । (ब्या० प्र०) 18 सद्भावसाधनात् । (ब्या० प्र०)
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