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________________ प्रथम परिच्छेद सर्वज्ञसिद्धि ] [ २६६ 'अनुमानोच्छेदप्रसंगात् । न हि जैमिनीयमतानुसारिणो विप्रकर्षिणामर्थानामभावासिद्धिमनुमन्यन्ते', वेदे कर्बऽभावसिद्धिप्रसङ्गात् सर्वज्ञाद्यभावसाधनविरोधाच्च । ते तामनुमन्यमाना वा शौद्धोदनिशिष्यका एव । न चैषामेतदात्मनीनं, अनुमानोच्छेदस्य दुर्निवारत्वात्, साध्यसाधनयोाप्त्यसिद्धेः' । परोपगमायाप्तिसिद्धेर्नानुमानोच्छेद इति चेन, तस्यापि परोपगमान्तरात्सिद्धावनवस्थाप्रसङ्गात् तस्यानुमानात्सिद्धौ परस्पराश्रयप्रसङ्गात् । प्रसिद्धेनुमाने ततः परोपगमस्य सिद्धिस्तत्सिद्धौ च ततो व्याप्तिसिद्धरनुमानप्रसिद्धिरिति । ततो न श्रेयानयं निर्बन्धः सर्वात्मना चेतनादिगुणव्यावृत्तिः पृथिव्यादेर्न सिद्धयत्येवेति । तत्प्रसिद्धौ च न यदि बौद्ध मत में "अदृश्यानुपलंभ" हेतु से अभाव सिद्धि नहीं है तो फिर परस्पर में असंबद्ध परमाणुओं का विकल्प बुद्धि में प्रतिभास न होने से उन परमाणुओं के अभाव को भी सिद्ध नहीं कर सकेंगे। फिर मीमांसकों के लिए यह सब उनका सिद्धांत स्वयं उनके लिए अहितकर ही हो जावेगा। इस प्रकार अनुमान के भी उच्छेद का प्रसंग आ जावेगा ।* __ जैमिनीय मतानुसारी जन परोक्षवर्ती पदार्थ के अभाव की असिद्धि को नहीं मानते हैं । अर्थात् दुरवर्ती परोक्ष पदार्थ का अभाव स्वीकार करते हैं। तथा च वेद के कर्ता के अभाव की असिद्धि का प्रसंग आ जावेगा। अर्थात् वेद का कर्ता मान लेने से आप वेद को अपौरुषेय सिद्ध नहीं कर सकेंगे एवं सर्वज्ञादि के अभाव को सिद्ध करने वाले हेतु में भी विरोध आ जावेगा। __ इस प्रकार मानने वाले जैमिनीय लोग भी बुद्ध के ही शिष्य सिद्ध हो जाते हैं परन्तु आपको यह अभीष्ट नहीं है । अर्थात् अदृश्यानुपलंभ हेतु से अभाव को नहीं मानने वाले मीमांसक, जमिनीय आदि के यहाँ यह सभी उपर्युक्त दोष आ जावेंगे । अतः उन लोगों का यह कथन स्वयं ही उनके लिए अहितकर है । और आप लोगों के लिये अनुमान का अभाव भी दुर्निवार है क्योंकि साध्य और साधन में व्याप्ति के सिद्ध न होने से अनुमान कैसे बन सकेगा ? __ मीमांसक-दूसरों ने व्याप्ति को स्वीकार किया है अतः उनकी स्वीकारता से हो हम ब्याप्ति की सिद्धि कर लेंगे तो अनुमान का अभाव नहीं होगा। ___ जैन-यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि दूसरों को भी दूसरे के द्वारा स्वीकृत प्रमाण से व्याप्ति की सिद्धि मानने से एवं उस अन्य को भी अन्य के द्वारा स्वीकृत प्रमाण से व्याप्ति को मानने से तो अनवस्था दोष आ जावेगा। यदि आप कहें कि व्याप्ति की सिद्धि अनुमान से करेंगे तो परस्पराश्रय दोष का प्रसंग आवेगा। 1 अन्यथा। 2 भावसिद्धिमित्यर्थः । 3 अन्यथा । (ब्या० प्र०) 4 ततो वेदस्य सकर्तृ कत्वं स्यात् । 5 प्रतिपादनम् । 6 स्वकीयम् । 7 अनुमानोच्छेदस्य दुनिवारत्वम् । 8 विप्रकृष्टत्वे । (ब्या० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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