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[ कारिका ४
लिकं तेन मूर्तिमता चित्तस्यामूर्तस्यावरणायोगादिति वदतो बौद्धान्निराकर्तुमावरण ग्रहणं, मूर्तिमतापि मदिरादिना चित्तस्यामूर्तस्यावरणदर्शनात्, ' 'तत्सम्बन्धाद्विभ्रम' संवेदनादन्यथा तदनुपपत्तेः । मदिरादिनेन्द्रियाण्येवात्रियन्ते इति चेन्न तेषामचेतनत्वे तदावरणासंभवात् 'स्थाल्यादिवद्विभ्रमायोगात् । 'चेतनत्वे तेषाममूर्तत्वेपि मूर्तिमतावरणमायात 'मिति प्रायेणान्यत्र ' चिन्तितम् । ततो दोषहानिवदावरणहानिरपि निश्शेषा क्वचित्साध्या, ' तदावरणस्य दोषादन्यस्य मूर्तिमतः प्रसिद्धेः ।
अष्टसहस्री
जैन - इस प्रकार से कहने वाले बौद्ध का खंडन करने के लिए ही "आवरण" शब्द को ग्रहण किया है क्योंकि मूर्तिमान् मदिरा आदि के द्वारा भी अमूर्तिक आत्मा में आवरण देखा जाता है । उस मदिरा के निमित्त से विभ्रम का अनुभव होता ही है यदि ऐसा न मानो तो मदिरा पीने के बाद मनुष्य की उन्मत्त अवस्था नहीं हो सकेगी ।
बौद्ध-मदिरा आदि के द्वारा इंद्रियों पर ही आवरण देखा जाता है अर्थात् इन्द्रियाँ ही मदिरा से उन्मत्त होती हैं न कि आत्मा ।
जैनाचार्य - ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि इन्द्रियों को अचेतन मान लेने पर उन पर मदिरा आदि से आवरण होना संभव नहीं है जैसे कि अचेतन पात्र - शीशी आदि में रखी हुई मदिरा के निमित्त से उनमें उन्मत्तता नहीं आती है वैसे ही यदि इन्द्रियाँ अचेतन हैं तो वे उन्मत्त नहीं हो सकेंगी और यदि आप इन्द्रियों को चेतन रूप स्वीकार कर लेंगे तब तो उन्हें आत्मा के समान अमूर्तिक भी मानना पड़ेगा पुनः मूर्तिमान् कर्मों के द्वारा अमूर्तिक पर आवरण सिद्ध ही हो जावेगा क्योंकि जैन सिद्धान्त में कर्मबंध सहित संसारी आत्मा को कथंचित् मूर्तिक भी माना है ।
अतः संसारी जीवों का चेतनत्व एवं अमूर्तिकत्व स्वभाव होने पर भी मूर्तिमान् कर्मों के द्वारा आवरण सिद्ध हो ही जाता है इस विषय का प्रायः श्लोकवार्तिक में विशेष रूप से विचार किया गया है।
दोष के अभाव के समान आवरण का अभाव भी किसी जीव विशेष में निश्शेष रूप से सिद्ध करना ही चाहिए क्योंकि दोष से भिन्न मूर्तिमान् आवरण की प्रसिद्धि है ।
भावार्थ - अमूर्तिक आत्मा का मूर्तिमान् कर्मों से पराजित होना स्पष्ट है इस बात को 'राजवार्तिक ग्रन्थ' में श्री अकलंक देव ने भी कहा है । "अमूर्तित्वादभिभवानुपपत्तिरिति चेत्; न; तद्वद्विशेषसामर्थ्योपलब्धेश्चैतन्यवत् ।"
प्रश्न - चूंकि आत्मा अमूर्त है अतः उसका कर्म पुद्गलों से अभिभव नहीं होना चाहिये ?
1 कुतः । ( ब्या० प्र० ) 2 तेन मदिरादिना । 3 भ्रांतिज्ञान । (ब्या० प्र०) 4 मदिराभाजनादि । अचेतनत्वात् । ( ब्या० प्र० ) 5 अभ्युपगते | 6 तथा च कर्मणा मूर्तिमता चित्तस्यामूर्तस्यावरणायोगात् इति वचनमयुक्तमिति भावः । ( ब्या० प्र० ) 7 श्लोकवार्तिके । 8 पीद्गलिकस्य । ( ब्या० प्र० )
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