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तत्त्वोपप्लववाद ] प्रथम परिच्छेद
। २०७ [ एकस्मिन् देशे स्थितस्य मनुष्यस्य ज्ञाने बाधानुत्पत्तिः प्रामाण्यहेतुः सर्वत्र वा ? ] . किञ्च क्वचिद्देशे स्थितस्य बाधानुत्पत्तिः प्रतिपत्तुः सर्वत्र वार्थसंविदि प्रामाण्यहेतः ? न तावत्प्रथमः पक्ष:--'कस्यचिन्मिथ्यावबोधस्यापि प्रमाणत्वापत्तेः । नापि द्वितीयः, कस्यचिद्रे स्थितस्य 'बाधानुत्पत्तावपि समीपे बाधोत्पत्तिप्रतीतेः सर्वत्र स्थितस्य बाधानुत्पत्तिसन्देहात् । समीपे 'बाधानुत्पत्तावपि दूरे बाधोत्पत्तिसंभावनाच्च ।
[ कस्यचित् मनुष्यस्य बाधानुत्पत्तिः सर्वस्य वा ? ] किञ्च 'कस्यचिद्बाधानुत्पत्ति: सर्वस्य वा ? न तावत्कस्यचिद्बाधानुत्पत्तिः' संविदि
दूसरा प्रश्न यह है कि[ किसी को बाधा का उत्पन्न न होना ज्ञान में प्रमाणता का हेतु है या सभी को बाधा का न
___ होना प्रमाणता का हेतु है ? ] किसी को बाधा की उत्पत्ति नहीं है या सभी को ? किसी को बाधा की उत्पत्ति नहीं है यह बात ज्ञान में प्रमाणता का हेतु नहीं हो सकती है क्योंकि विपर्यय ज्ञान में भी यह बात मौजूद है। मरीचिकादि के जलज्ञान में देशान्तर के गमन आदि से बाधा की उत्पत्ति न होने पर भी प्रमाणता का अभाव है।
यदि दूसरा विकल्प लेवो कि सभी को बाधा की उत्पत्ति का न होना ही अर्थज्ञान में प्रताणता का हेतु है यह पक्ष भी ठीक नहीं है "सभी को बाधा की उत्पत्ति नहीं है" इस बात को अल्पज्ञ जनों के द्वारा जानना शक्य नहीं है अथवा शक्य मानों तो जो जानेगा वही मनुष्य सर्वज्ञ हो जावेगा। पुनः सभी के सर्वज्ञ हो जाने से "यह असर्वज्ञ (अल्पज्ञ) है।" यह व्यवहार ही समाप्त हो जावेगा क्योंकि सभी देश, कालवर्ती पुरुष की अपेक्षा से बाधकाभाव के निर्णय की सर्वज्ञ के साथ अन्यथानुपपत्ति है। इसलिये बाधा से रहित होने से ज्ञान प्रमाण है यह कथन ठीक नहीं है ।
भावार्थ-तत्त्वोपप्लववादी ने मीमांसक से प्रश्न किया कि आप ज्ञान को सच्चा कैसे मानते हैं ? तब मीमांसक ने कहा कि जान में बाधा की उत्पत्ति नहीं होती है इसलिए उस ज्ञान की प्रमाणता सिद्ध है। तब तत्त्वोपप्लववादी अनेकों प्रश्न उठा रहा है। पहले उसने कहा कि मिथ्याज्ञान में भी कभी-कभी बाधा की उत्पत्ति नहीं होती है तो क्या वह ज्ञान प्रमाण हो जावेगा? देखिये ! कोई मनुष्य सीप को चाँदी समझकर उसे तिजोरी में रख देता है बहुत दिनों तक उसे चाँदी ही मान रहा है तो क्या यह ज्ञान प्रमाण है ? यदि कहो कि बाधा का न होना-मतलब जैसे को तैसा ग्रहण करना, तब तो यह बात भी आप कैसे समझेंगे?
यदि कहो ज्ञान में प्रमाणता है इस बात के निश्चय से हम समझ लेंगे कि यह सत्यार्थ को
1 दूरे समीपे च स्थितस्य प्रतिपत्तुर्बाधानुत्पत्तिः। 2 पुंसः। 3 बाधककारणवैकल्यात् । 4 मरीचिकायां । (ब्या० प्र०) 5 आसन्नतैमिरिकस्य । (ब्या० प्र०) 6 संविदि प्रामाण्यहेतुः । (ब्या० प्र०) 7 संविदि प्रामाण्यहेतुः । (ब्या० प्र०)
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