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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
विकल्पः संभवति, मिथ्याज्ञानेपि क्वचिदनंतरं बाधानुत्पत्तिदर्शनात् । सर्वदा बाधानुत्पत्तेः संविदि प्रामाण्यनिश्चयश्चेन्न', तस्याः प्रत्येतुमशक्यत्वात्, संवत्सरादि' विकल्पेनापि 'बाधोत्पत्तिदर्शनात् । चिरतरकालं बाधस्यानुत्पत्तावपि स्वकारणवैकल्यात् कालान्तरेप्यसौ नोत्पत्स्यते इति कुतो निश्चयनीयः ? क्वचित्तु मिथ्याज्ञाने तज्जन्मन्यपि बाधा नोपजायते, स्वहेतुवैकल्यात् । न 1°चैतावता "तत्प्रामाण्यम् ।
यदि दूसरा विकल्प लेवो कि सर्वदा ही बाधा की उत्पत्ति न होने से ज्ञान में प्रमाणता का निश्चय होता है तब तो यह कथन भी ठीक नहीं है। सर्वदा ही बाधा की उत्पत्ति का नहीं होना यह समझना ही अशक्य है। संवत्सर-वर्ष आदिकों के भेद से भी बाधा की उत्पत्ति देखी जाती है। बहुत काल तक बाधा की उत्पत्ति न होने पर भी अपने कारणों की विकलता होने से कालांतर में भी वह "बाधा का न होना" नहीं हो सकेगा-बाधा न होना असंभव है। यह बात भी आप मीमांसक किस प्रमाण से निश्चित करेंगे ? अर्थात् सीप में चाँदी का ज्ञान हो गया और यह कल्पना बहुत दिनों तक बनी रही। यह सीप है इस प्रकार की प्रतोति कराने वाला कारण नहीं मिल सका तो बाधा की उत्पत्ति नहीं भी होती है और बाधक कारण मिलने पर बाधा उत्पन्न हो भी जाती है। कहीं पर मिथ्याज्ञान में तो उस जन्म में भी बाधा उत्पन्न नहीं होती है क्योंकि अपने हेतु की विकलता है। अर्थात् बाधक कारण नहीं भी मिलते हैं । एतावन्मात्र से हमेशा बाधा की उत्पत्ति न होने मात्र से वह अर्थ ज्ञान प्रमाण हो जावे ऐसी बात भी नहीं है। [ एक देश में स्थित मनुष्य के ज्ञान में बाधा की अनुत्पत्ति प्रमाणता का हेतु है या सर्वत्र बाधा की उत्पत्ति न
___ होना प्रमाणता का हेतु है ? ] दूसरी तरह से पुनः हम प्रश्न करते हैं कि किसी देश में स्थित ज्ञाता-मनुष्य को बाधा की उत्पत्ति न होना अर्थ ज्ञान में प्रमाणता का कारण है ? या सभी स्थान में रहने वाले पुरुषों की बाधानुत्पत्ति अर्थ ज्ञान में प्रमाणता का कारण है ? प्रथम पक्ष तो ठीक नहीं है अन्यथा किसी मिथ्याज्ञान को भी प्रमाण मानना पड़ेगा।
दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं है कहीं दूर में ठहरे हुए पुरुष को बाधा की उत्पत्ति न होने पर भी समीप में बाधा की उत्पत्ति देखी जाती है। सर्वत्र स्थित सभी देशों में रहने वालों को बाधा की उत्पत्ति नहीं है इसमें संदेह है क्योंकि समीप में बाधा की उत्पत्ति न होने पर भी दूर में बाधा की उत्पत्ति संभव है।
1 तत्त्वोपप्लववादी। 2 बाधानत्पत्तेः। 3 भेदेन। 4 स्वकारणसाकल्यात् । शुक्तिकायां रजतज्ञाने। (ब्या० प्र०) 5 बाधानुत्पत्तिः। 6 तत्त्वोपप्लववादी मीमांसकं प्रत्याह-हे मीमांसक त्वया कुतः प्रमाणान्निश्चयनीयो द्वितीयोपि विकल्प: ? । 7 असर्व विदेदं प्रत्येतुमशक्यमिति भावः । (ब्या० प्र०) 8 विवक्षितभवे । (ब्या० प्र०) 9 हेतु: बाधककारणम् । 10 सर्वदा बाधानुत्पत्त्या । 11 अर्थवेदनस्य ।
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