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________________ २०४ 1 अष्टसहस्री [ कारिका ३प्रमाणत्वप्रसक्तेः । अथ' यथार्थग्रहणनिबन्धना बाधानुत्पत्तिरप्रमाणाऽसंभविनी प्रमाणत्वसाधिनीति मतं, 'कुतस्तस्याः सत्यार्थग्रहणनिबन्धनत्वनिश्चयः ? 'संविदः प्रमाणत्वनिश्चयादिति चेत् परस्पराश्रयः सति प्रमाणत्वनिश्चये संवेदनस्य यथार्थग्रहणनिबन्धनबाधानुत्पत्तिनिर्णयस्तस्मिश्च सति प्रमाणत्वनिश्चय इति । 'अन्यतः प्रमाणत्वनिश्चये किमेतया बाधानुत्पत्या ? न च बाधानुत्पत्तेर्यथार्थग्रहणनिबन्धनत्वं स्वत एव निश्चीयते, 'सन्देहाभावप्रसङ्गात् । दृश्यते च सन्देहः, किं 10यथार्थग्रहणान्नोत्र बाधानुत्पत्तिराहोस्वि पुनः यदि आप प्रश्न करें कि आप जैन प्रमाण की प्रमाणता कैसे मानते हैं तो इस पर ग्रंथकार स्वयं आगे समाधान करेंगे कि प्रमाण की प्रमाणता अभ्यास दशा में स्वतः है और अनभ्यास दशा में पर से होती है। [ बाधा रहितत्व हेतु का खंडन ] यदि आप दूसरा पक्ष लेवो कि "बाधा की उत्पत्ति न होने से प्रमाण में प्रमाणता आती है तो यह कहना भी ठीक नहीं है। मरीचिका में जल रूप मिथ्याज्ञान में भी अपने बाधक कारणों की विकलता-न्यूनता होने से "यह जल नहीं है। इस प्रकार से बाधक की उत्पत्ति असंभव होने से प्रमाणता का प्रसंग आ जावेगा। अर्थात् जैसे किसी ने दूर चमकती हुई बालू का ढेर देखा और वहाँ जाकर स्नान, पान आदि के लिये पानी का निर्णय नहीं किया अपने काम में लग गया। उसे बाधा की उत्पत्ति तो नहीं हुई कि "यह जल नहीं है" पुना यह मिथ्याज्ञान प्रमाणीक हो जावेगा किन्तु ऐसी बात तो है नहीं। मीमांसक-यथार्थ को ग्रहण करने में कारणभूत अप्रमाण में असंभवि अर्थात् प्रमाण में संभव रूप बाधा का उत्पन्न न होना ही प्रमाणता को सिद्ध करता है। शून्यवादी - यदि ऐसा आपका मत है तब तो वह बाधा की अनुत्पत्ति सत्यार्थ को ग्रहण करने में कारणभूत है यह निश्चय भी कैसे होगा ? मीमांसक-ज्ञान में प्रमाणता का निश्चय होने से हो जावेगा। शून्यवादी-ऐसा मानने पर तो परस्पराश्रय दोष आता है प्रमाणता का निश्चय होने पर ज्ञान में यथार्थ ग्रहण निमित्तक बाधा की उत्पत्ति नहीं है ऐसा निर्णय होगा और बाधा की उत्पत्ति नहीं है इस बात का निश्चय हो जाने पर प्रमाणता का निश्चय होगा। इस प्रकार से दोनों की सिद्धि नहीं हो सकेगी। यदि अन्य प्रमाणांतर से प्रमाणता का निश्चय होना कहो तो पुनः इस बाधा की अनुत्पत्ति से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा ? अर्थात् आपने बाधा की उत्पत्ति न होना इसी से ज्ञान को वास्त 1 मीमांसकः। 2 ननु स्वकारणवैकल्यनिबंधना । (ब्या० प्र०) 3 तत्त्वोपप्लववादी। 4 तीति शेषः। 5 मीमांसकः। 6 तत्त्वोपप्लववादी। 7 प्रमाणान्तरात् । 8 मीमांसकाभिप्रायं निराकूर्वन्नाह तत्त्वोपप्लववादी। 9 अन्यथा। 10 अन्यथा । न चैवं । (ब्या० प्र०) 11 नः अस्माकम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ..
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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