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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
औचित्य अर्थ में-"मातंगगामिनी गच्छति" मातंग गामिनी जाती है इतना कहने पर हस्तिनी जा रही है यह अर्थ होता है न कि चांडाल की स्त्री।
देश के प्रसंग में-"अयोध्यायां रामलक्ष्मणो" ऐसा कहने पर दशरथ के पुत्र ही समझा जाता है न कि शुक और सारस पक्षी । अर्थात् राम लक्ष्मण का अर्थ शुक, सारस भी होता है किन्तु 'अयोध्या में' ऐसा देश शब्द का प्रयोग करने पर शुक सारस नहीं समझा जाता है ।
काल अर्थ में-"रात्री पतंगो भ्रमति' रात्रि में पतंग भ्रमण करता है । इतना कहने पर रात्रि शब्द काल वाची होने से पतंग का अर्थ खद्योत ही करना चाहिये न कि सूर्य । यद्यपि पतंग का अर्थ सूर्य है फिर भी रात्रि में सूर्य नहीं रहता है। इत्यादि रूप से प्रकरण से भी शब्द से अर्थ का निश्चय किया जाता है।
__ इस पर जैनाचार्यों का कहना है कि कहीं-कहीं प्रकरण से भी अनेक प्रकार के अर्थ उपयोगी दीखते हैं जैसे कोई राजकुमार सज्जीभूत होकर बाहर जाने के लिए तैयार बैठा है और ककड़ी खा रहा है ऐसी दशा में "सैंधव लावो" कहने पर सैंधव शब्द के उस समय घोड़ा और नमक दोनों ही अर्थ प्रकरण प्राप्त हैं । 'द्विसंधान' काव्य में एक साथ ही प्रत्येक शब्द के पांडव और रामचन्द्र के चरित्र पर घटित होने वाले दो दो अर्थ किये गये हैं। अतः अल्पज्ञ, लौकिक विद्वान्, प्रकरण आदि के द्वारा अनेक अर्थों को प्रतिपादन करने वाले वेद के शब्दों की ठीक, ठीक एक ही अर्थ में व्यवस्था नहीं कर सकेंगे और यदि एक ही अर्थ व्यवस्थित होता तो यह प्रभाकर, भाट्ट और ब्रह्माद्वैतवादी जनों का
द भी क्यों होता? देखो ! कोई तो कामधेन के समान उन वेदवाक्यों से कर्मकाण्ड अर्थ निकालते हैं, कोई चार्वाक "अन्नाद्वै पुरुषः" आदि श्रुतियों से अपना जड़वाद पुष्ट करते हैं, कोई अद्वैतवादी उन मंत्रों से ब्रह्मवाद सिद्ध करते हैं । आप मीमांसक भी नियोग और भावना रूप अर्थ में परस्पर में विवाद कर रहे हैं । यदि वेद का अर्थ पहले से हो निर्णीत होता तो इतने हिंसापोषक या हिंसा के निषेधक तथा केवल जड़वाद या केवल आत्मवाद रूप विरुद्ध व्याख्यानों के द्वारा परस्पर में झगड़े क्यों देखे जाते हैं ? यदि आप कहें कि वेद के अर्थों को जानने वालों का ज्ञान मंद है अतः झगड़े देखे जाते हैं किन्तु प्रतिभाशाली मनु आदि ऋषि एक ही अर्थ करते है वे सातिशय प्रज्ञाशाली हैं । वेदों के अर्थों को स्मरण रखने की पूर्ण रूप से विशेषता उनमें है । पुनः जैन प्रश्न करते हैं कि उन मनु, याज्ञवल्क आदि ऋषियों की बुद्धि में विशेषता कैसे आई है ? तब मीमांसक ने कहा कि उन ऋषियों ने पूर्व जन्म में श्रुत का अभ्यास किया है। तब प्रश्न यह होता है कि इन मनु आदिकों ने पूर्व जन्म में श्रुत का अभ्यास स्वयं किया है या गुरु की सहायता से ? यदि स्वतः कहो तो सभी ही पूर्व जन्म में स्वतः वेद का अभ्यास कर सकते हैं। यदि गुरु से कहो तो गुरु कौन है ? चतुर्मुख ब्रह्मा को कहो तो भी ब्रह्मा को भी अनादि कालीन वेदों का ज्ञान कैसे हुआ? क्योंकि आप ब्रह्मा को भी अनादि कालीन सर्वज्ञ नहीं मानते हैं। फिर भी भीमांसक बोलता ही जाता है कि यद्यपि वेद एक है किन्तु उसकी हजारों शाखायें हैं, स्वर्ग में ब्रह्मा बहुत दिनों तक वेद को पढ़ते हैं फिर वहाँ से अवतार लेकर वे मनुष्य लोक
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