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भावनावाद ]
प्रथम परिच्छेद
[ १५६
[ करोत्यर्थसामान्यं नित्यमस्ति इति भाट्टन मन्यमाने जैनाचार्यास्तस्य निराकरणं कुर्वति । 'नित्यं करोत्यर्थसामान्यं प्रत्यभिज्ञायमानत्वाच्छब्दवदिति चेन्न, हेतोविरुद्धत्वात्, कथञ्चिन्नित्यस्येष्ट विरुद्धस्य साधनात, सर्वथा नित्यस्य प्रत्यभिज्ञानायोगात्, तदेवेदमिति पूर्वोत्तरपर्यायव्यापिन्येकत्र' प्रत्ययस्योत्पत्तेः, पौर्वापर्यरहितस्य' 'पूर्वापरप्रत्यय विषयत्वासम्भवात् । 'धर्मावेव पूर्वापरभूतौ, न धर्मसामान्यमिति चेत् कथं तदेवेदमित्यभेदप्रतीति:13? पूर्वापरस्वरूपयोरतीतवर्तमानयोस्तदित्यतीतपरामशिना स्मरणेनेदमिति वर्तमानोल्लेखिना प्रत्यक्षेण च विषयीक्रियमाणयोः परस्परं 14भेदात् । 1 करोतिसामान्यादेकस्मात्तयोः कथञ्चि
[ करोति क्रिया का अर्थ सामान्य और नित्य है ऐसा भाट्ट के द्वारा कहने पर जैनाचार्य उसका निराकरण
करते हैं ] भाट्ट–'करोति' क्रिया का अर्थ सामान्य और नित्य है क्योंकि उसका प्रत्यभिज्ञान देखा जाता है शब्द के समान ।
जैन-नहीं । आपका हेतु विरुद्ध है यह "प्रत्यभिज्ञायमानत्वात्" हेतु आपके इष्ट सर्वथा नित्य से विरूद्ध कथंचित् नित्य को सिद्ध करता है क्योंकि सर्वथा नित्य का प्रत्यभिज्ञान होना ही असंभव है। "तदेदेदं" यह वही है इस प्रकार से पूर्वोत्तर पर्याय में व्यापी एक वस्तु में वह प्रत्यभिज्ञान उत्पन्न होता है, एवं पौर्वापर्य से रहित वस्तु पूर्वापर ज्ञान-प्रत्यभिज्ञान का विषय नहीं हो सकती है।
भाट्ट-पूर्व और अपर ये दो धर्म ही हैं, धर्मी सामान्य नहीं हैं।
जैन-यदि ऐसा कहो तो "तदेवेदं" यह अभेद प्रतीति कैसे होती है ? अर्थात् जिस सामान्य को मैंने यजनादि में प्राप्त किया था वही पचनादि में करोति अर्थ का सामान्य है क्योंकि 'तत्' इस प्रकार से अतीत के परामर्शी स्मरण से और 'इदं' इस प्रकार से वर्तमानोल्लेखी प्रत्यक्ष से विषय किए गये अतीत और वर्तमान पूर्वापर स्वरूप में परस्पर में भेद है इसलिए इस प्रत्यभिज्ञान में अभेद प्रतीति नहीं है।
___भाट्ट-एक करोति सामान्य से उन पूर्वापर में कथंचित् भेदाभेद की प्रतीति आती है। अथवा कथंचित् भेद से अभेद की प्रतीति आती है ऐसा भी टिप्पणीकार का कहना है।
1 (भाट्ट आह) घटादौ व्यभिचारश्चेहि "सर्वथा" पदं हातव्यम् । 2 जनः । 3 भाट्टमते करोत्यर्थस्य सामान्य सर्वथा नित्यमिति। 4 वस्तूनि । ज्ञानमेव पूर्वापरीभूतं नार्थ इत्याशङ्कायामाह। 6 अर्थस्य । (ब्या० प्र०) 7 स्मरणप्रत्यक्ष । (ब्या० प्र०) 8 प्रत्ययो ज्ञानम् । 9 भाट्टः। 10 पूर्वापरप्रत्ययहेतू । (ब्या० प्र०) 11 जैनः । 12 यदेव मया यजनादावुपलब्धं तदेव पचनादौ करोत्यर्थस्य सामान्यम् । 13 पूर्वापरभूतधर्मयोः । ईप् द्विः । (ब्या० प्र०) 14 ततो नाभेदप्रतीतिः । 15 भाट्टः ।
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