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अष्टसहस्री
[ कारिका ३रेव' सामान्योपलब्धिवत् । तदुभयांशावलम्बिनी स्मृतिः संशीतिरित्यपि फल्गुप्रायम्
तदविचलनेपि संशीति प्रसङ्गात् । सामान्याप्रत्यक्षतायामपि कन्याकुब्जादिषु प्रमथतरमेव 'स्मरणात् संशयदर्शनान्न सामान्योपलम्भः संशयहेतुरिति चेन्न--असिद्धत्वात् । तत्रापि हि 'प्रासादादिसन्निवेशविशेषविषयः' संशयः कन्याकुब्जनगरसामान्योपलम्भन पुरस्सर एवसर्वथानुपलम्भे संशयविरोधात् सर्वथोपलम्भवत्। । योपि तद्भावाभावविषयः संशयः सोपि नगरादिसामान्योपलम्भपूर्वक एव । नगरादिकं सामान्यतस्तावत्प्रसिद्धम् । कन्याकुब्जादि नामकं तु तदस्ति किं वा नास्तीत्युभयांशावलम्बिनः प्रत्ययस्योत्पत्तेन च नगरत्वं नाम न किञ्चिदिति वक्तुं शक्यम्
होती है क्योंकि उसका अन्वय व्यतिरेक माना गया है । किन्तु सामान्य की उपलब्धि के समान विशेष की स्मृति ही संशय नहीं है ।
उन उभय अंशों का अवलंबन लेने वाली स्मृति संशय है यह आप बौद्ध का कथन भी फल्गु प्रायः है क्योंकि ऐसा मानने पर तो साध्य-साधन रूप उभय अंशावलंबी निश्चल भूत में भी-अविचलन में भी संशय का प्रसंग आ जावेगा।
बौद्ध-सामान्य की प्रत्यक्षता के न होने पर भी कान्यकुब्जादिकों में प्रथमतर ही स्मरण होने से संशय देखा जाता है अतः सामान्य का प्रत्यक्ष होना संशय में हेतु है यह कथन ठीक नहीं है।
भाद्र-नहीं। क्योंकि आपका यह कथन असिद्ध है । वहाँ पर भी प्रासादादि रचना विशेष को विषय करने वाला संशय है और वह कन्याकुब्ज नगर सामान्य की उपलब्धि पूर्वक ही है। क्योंकि सामान्य रूप से भी विशेष की अपुपलब्धि होने पर अर्थात् सर्वथा अनुपलब्धि होने पर संशय का विरोध है सर्वथा उपलब्धि के समान ।
जो भी सामान्य के भाव और विशेष के अभाव रूप-भावाभाव का विषयभूत संशय है वह नगरादि सामान्य की उपलब्धि पूर्वक ही है। सामान्य से नगरादि तो प्रसिद्ध ही है किन्तु कान्यकुब्जादि नाम वाले हैं या नहीं ? इस प्रकार से उभयांशावलंबी ज्ञान उत्पन्न होता है । किन्तु नगर का नाम कुछ नहीं है ऐसा कहना तो शक्य नहीं है । प्रत्यासत्ति विशेष होने से प्रासादादि के समूह को ही नगर कह दिया जाता है । वहाँ "नगरं नगरं" इत्यादि रूप से अनुस्यूत ज्ञान का हेतु होने से नगर सामान्य सिद्ध
1 संशय इति शेषः । 2 बौद्धोक्तम् । 3 साध्यसाधनेत्युभयांशाविचलनेपि (निश्चलभूतेपि)। 4 बौद्धः। 5 विशेष । (ब्या० प्र०) 6 रचनाविशेष । 7 स्वस्तिक सर्वतोभद्रादि । (ब्या० प्र०) 8 पूर्वक एव। 9 सामान्यरूपेणापि विशेषस्यानुपलम्भे । 10 सामान्य विशेषप्रकारेण । (ब्या० प्र०) 11 सामान्यस्य भाव: विशेषस्याभावस्तयोविषयः । संशय। 12 कन्याकुब्जादिनगरम् । कन्याकुब्जादि नगरम् भवति न वा । (ब्या० प्र०) 13 भवति । (ब्या० प्र०) 14 नगरं इति पा० । (ब्या० प्र०)
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