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________________ परम पूज्य १०८ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की ओर से आशीर्वाद रूप में दो शब्द आर्यिका श्री ज्ञानमती माता जी उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी - टिकैत नगर की रहने वाली हैं। इनका गृहस्थावस्था का नाम मैना था। इनके पिता का नाम छोटेलाल एवं माता का नाम मोहनी देवी था । गृहस्थ आश्रम में रहते हुए छोटी उम्र में भी इनका धार्मिक ज्ञान विशेष था । इनकी भावना एवं रुचि धर्म के प्रति अगाध थी । माता-पिता द्वारा विवाह की तैयारियाँ की जाने पर इन्होंने इन्कार कर दिया और कहा कि मैंने स्त्री पर्याय का नाश करने के लिये दीक्षा लेने की ठान ली है । संसार के बन्धनों में न फंसने के लिए शादी की बात ठुकरा दी। इस प्रकार वैराग्य की जागृति तो हो चुकी थी परन्तु अपने मनोरथ की सिद्धि अर्थात् गृहपरित्याग गुरु के हस्तावलम्बन के बिना नहीं हो पाया था । जब हम वि० सं० २०१० में इनके गांव टिकैत नगर में पहुंचे तब इन्होंने घर से निकलने का अनंतर उसी साल बाराबंकी चातुर्मास होने पर दर्शन इन्कार कर दिया । से बहुत प्रयत्न किया किन्तु सफलता नहीं मिली । हेतु घर से हमारे पास आई एवं पुनः घर जाने एक दिन हमारे केशलोंच के प्रसंग पर इन्होंने भी अपने हाथ से अपने लोंच करना प्रारम्भ कर दिया। छोटी उम्र होने के कारण समाज के लोगों ने दीक्षा देने में बड़ा विरोध प्रस्तुत किया । तब हमने इन्हें सातवीं प्रतिमा के व्रत देकर लोगों को शांत किया । । उस अवस्था में भी इनकी बुद्धि अत्यंत तीक्ष्ण थी एवं पाठ या विषय एक बार बतला देने पर कंठस्थ कर लेती थीं समय देखा कि १५ दिन में ३०० गाथायें याद कर लीं, बुद्धि आश्चर्य होता था । एक बार जब दश भक्ति १०-१५ दिन में एकदम पक्की याद कर ली । स्मरण शक्ति भी प्रबल थी । कोई भी गोमट्टसार आदि कई विषयों को पढ़ाते की इतनी तीक्ष्णता को देखकर बड़ा पाठ याद करने के लिए कहा तो संस्कृत होते हुए भी चातुर्मास के पश्चात् बिहार करके जब हम श्री महावीर जी आये तो इनकी उत्कृष्ट भावना को देखकर शुभमुहूर्त में चैत्रकृष्णा वि० सं० २००६ को क्षुल्लिका दीक्षा दे दी । इनकी दीक्षा के पुरुषार्थ को देखकर ही हमने इनका दीक्षित नाम "बीर मती" रखा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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