________________
आप्त की परीक्षा ] प्रथम परिच्छेद
[ १६ ___ इति भगवतो महत्त्वे साध्वे तीर्थक रत्त्वं साधनं कुतः प्रमाणात् सिद्धम् ? न तावदध्यक्षात्तस्य तदविषयत्वात्साध्यवत् । नाप्यनुमानात्तदविनाभाविलिंगाभावात् । समयात्सिद्धमिति चेत् पूर्ववदागमाश्रयत्वादगमकत्वमस्य व्यभिचारश्च । न हि तीर्थकरत्वमाप्ततां साधयति, शक्रादिष्वसम्भवि सुगतादौ दर्शनात् *। यथैव हि भगवति तीर्थकरत्वसमयोस्ति तथा सुगतादिष्वपि । सुगतस्तीर्थकरः, कपिलस्तीर्थकर इत्यादिसमयाः सन्तीति सर्वे महान्तः स्तुत्याः स्युः । न च सर्वे सर्वदशिनः परस्परविरुद्धसमयाभिधायिनः * । 'तदुक्तम् ।
सुगतो यदि सर्वज्ञो कपिलो नेति का प्रमा। तावुभौ यदि सर्वज्ञौ मतभेद: कथं तयोः ॥
आगमों में परस्पर में भिन्न-भिन्न अभिप्राय होने से विरोध पाया जाता है, अतः सभी को आप्तपना (सर्वज्ञपना) नहीं है, अर्थात मीमांसक सांख्य, सौगत, नैयायिक, चार्वाक, तत्वोपप्लववादी, योग, ब्रह्माद्वैतवादी, ज्ञानाद्वैतवादी आदि अनेक एकान्तमतावलम्बी वादियों में सभी के ही सर्वज्ञता नहीं हो सकती है, इसलिए कोई एक गुरु-परमात्मा अवश्य है ॥३॥
इस प्रकार भगवान् में “महानपना" साध्य करने में तीर्थकरत्व हेतु भी किस प्रमाण से सिद्ध है ?
यह हेतु प्रत्यक्ष से तो सिद्ध नहीं है, क्योंकि साध्य के समान यह हेतु भी प्रत्यक्ष का विषय नहीं है, न अनुमान से सिद्ध है क्योंकि साध्य जो महान् है उसके साथ अविनाभावी लिंग नहीं पाया जाता है। यदि आप कहें-आगम से सिद्ध है, तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि पूर्ववत् आगमाश्रय होने से यह हेतु अगमक है-साध्य को सिद्ध करने वाला नहीं है । और विपक्ष में जाने से व्याभिचारी भी है।
देखिये-यह तीर्थकरत्व' हेतु आप्तपने को सिद्ध नहीं कर सकता है । यद्यपि यह तीर्थकरत्व हेतु देवादिकों में असंभवी है फिर भी बुद्ध आदिकों में पाया जाता है। * क्योंकि जिस प्रकार भगवान् तीर्थंकर का आगम मौजूद है उसी प्रकार सुगत आदि में भी अपने-अपने तीर्थ को करने वाला आगम पाया जाता है । सुगत भी तीर्थकर हैं, कपिल भी तीर्थंकर हैं, इस प्रकार आगम मौजूद है । अतः सभी ही महान् एवं स्तुति के योग्य हो जावेंगे।
किन्तु वे सभी सर्वदर्शी सर्वज्ञ नहीं हैं, क्योंकि परस्पर में विरुद्ध आगम का कथन करने वाले हैं।
__ जैसा कि कुमारिल भट्ट ने कहाश्लोकार्थ-बुद्ध यदि सर्वज्ञ है ओर कपिल (सांख्य का गुरु) नहीं है इसमें क्या प्रमाण है
1 प्रत्यक्षागोचरत्वात् । 2 भगवान् धर्मी महान् भवतीति साध्यस्तीर्थक रत्वान्यथानुपपत्तेरिति हेतुः । यो महान भवति स तीर्थकरो न भवति यथा रथ्यापुरुषः तीर्थकरश्चासौ तस्माद् महान भवतीति । 3 आगमात् । 4 व्यभिचारमेव भावयति । 5 एतन्नास्तीत्युक्ते आह । 6 आशङ्कय । 7 कुमारिलेन । 8 सर्वथा क्षणिक, सर्वथा नित्यमित्यादि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org