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स्वामीको स्तुतिपूर्वक नमस्कार किया गया है । दूसरी स्तुति में सर्व तीर्थङ्करोंकी स्तुति की गयी है । तीसरी स्तुतिमें श्रुतज्ञान ( द्वादशाङ्गी ) की स्तुति की गयी है और चौथी स्तुतिमें वागीश्वरी अथवा सरस्वतीकी स्तुति की गयी है । चैत्यवन्दन - देववन्दनमें यह स्तुति बोली जाती है । सामायिक लेनेकी विधि
सामायिक के उपयुक्त वस्तुएँ
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१ शुद्ध वस्त्र, २ कटासन, ३ मुहपत्ती ४ साँपडा, ५ धार्मिक पुस्तक, ६ चरवला, ७ घड़ी, ८ नवकारवाली |
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१ प्रथम शुद्ध वस्त्र पहनना । उसके पश्चात् —
. २ चरवलासे भूमि प्रमार्जन कर शुद्ध करनी ।
3 गुरुका योग न हो तो एक उच्च आसन पर धार्मिक पुस्तक, मुहपत्ती अथवा नवकारवाली स्थापित करनी । तदनन्तर
४ मुहपत्ती बाएँ हाथमें रखकर दाहिना हाथ उसके सम्मुख रखना फिरनमस्कार - मन्त्र तथा पंचिदिय-सूत्र कहकर उसमें आचार्यकी स्थापना करना । अर्थात् सारी क्रिया आचार्य के सम्मुख उनकी सम्मति से होती है, ऐसा समझना । उसके बाद
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एक 'खमासमण' देकर 'इरिया वही' सूत्र कहना ।
इसके बाद ' तस्स उत्तरी' तथा 'अन्नत्थ' सूत्र कहकर 'चंदेसु निम्मलयरा' तक एक लोगस्सका काउस्सग्ग करना । 'लोगस्स' नहीं आता हो तो चार बार 'नमस्कार - मन्त्र' बोलना |
काउस्सग्ग पूर्णकर प्रकटमें 'लोगस्स' बोलकर एक 'खमासमण' देना | बादमें
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९ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुहपत्ती पडिलेहुं ?" 'इच्छं' ऐसा कहकर पचास बोलसे मुहपत्ती पडिलेहनी ।
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