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________________ वितु- प्रदान करो । सुइक्क - सारं - शास्त्रका साररूप अथवा पूर्ण - पवित्र । सव्वे - सभी । जिणिदा - जिनेन्द्र | सुर - विंद - वंदा - देवसमूहसे वन्दनीय | अनन्य भी 'कल्लाण - वल्लीण - कल्याणरूपी लता । विसाल - कंदा - विशाल कन्दके समान । निव्वाण - मग्गे - निर्वाण - प्राप्तिके मार्ग में | वर - जाण - कप्पं- श्रेष्ठ समान । Jain Education International वाहनके पणासियासेस- कुचाइ - दप्पंजिसने कुवादियोंका अभिमान सर्वथा नष्ट किया है, जिसने एकान्तवादियोंके सिद्धान्तोंको असत्य प्रमाणित किया है । मयं - मत, श्रुतज्ञान I जिणाणं-जिनोंका, श्रीजिनेश्वर देव प्ररूपित | सरणं - शरणरूप, शरण लेने योग्य । बुहाणं-विद्वानोंके | ७५ नमामि - मैं नमस्कार करता हूँ निच्चं - नित्य | लोकमें तिजग- पहाणं- तीनों श्रेष्ठ । कु दिंदु - गोखीर- तुसार - वन्नामुचुकुन्द - पुष्प ( मोगरा ), चन्द्रमा, गायका दूध और हिमसमूह जैसी श्वेत कायावाली । कुंद - मोगरा | इंदु - चन्द्रमा | गोखीर - गायका दूध तुसार - हिम ( बर्फ ) । वन्ता - वर्णवाली | सरोज - हत्था - हाथ में धारण करनेवाली । कमले - कमलपर । निसन्ना- बैठी हुई । वाईसरी- वागीश्वरी (सरस्वतीदेवी ) पुत्थय - वग्ग - हत्था - पुस्तक के समूह को हाथ में करनेवाली । धारण लिये, सुहाय-सुखके देनेवाली । सा- वह | अम्ह - हमें । सया-सदा । पसत्था - प्रशस्त, प्रशस्त । For Private & Personal Use Only कमल सर्व सुख प्रकार से www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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