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________________ ७२ हाथमें किसी प्रकारके अस्त्र-शस्त्र नहीं होते हैं, अतः वीतरागका अपूर्व दृश्य उपस्थित करता है । प्रश्न-अरिहन्तके चैत्योंकी उपासना किस रीतिसे की जाती है ? उत्तर-अरिहन्तके चैत्योंकी उपासना अङ्गपूजा, अग्रपूजा और भावपूजा द्वारा की जाती है। प्रश्न-अङ्गपूजा किसे कहते हैं ? । उत्तर--जल, चन्दन, पुष्पादिसे अरिहन्तके अङ्गोंका पूजन करना, उसे अङ्गपूजा कहते हैं। प्रश्न-अग्रपूजा किसे कहते हैं ? उत्तर-अरिहन्तके चैत्यके समक्ष अक्षत, फल, नैवेद्य, धूप, दीपादि रखना, उसे अग्रपूजा कहते हैं ? प्रश्न-भावपूजा किसे कहते हैं । उत्तर-अरिहन्त भगवान्की स्तुति-प्रार्थना करना तथा उनका ध्यान धरना, उसे भावपूजा कहते हैं । प्रश्न-अरिहन्त भगवान्का ध्यान कैसे धरते हैं ? उत्तर-उसके लिये प्रधानतया कायोत्सर्ग किया जाता है और उसमें अरिहन्त भगवान्के चैत्यका आलम्बन ( सहारा ) लिया जाता है । प्रश्न-आलम्बन लेनेका कारण क्या है ? उत्तर-आलम्बन लेनेसे मन उनपर स्थिर होता है। यदि आलम्बन नहीं लें तो मन उनपर स्थिर नहीं होता। प्रश्न-अरिहन्त भगवान्के चैत्यका आलम्बन लेनेके पश्चात् क्या किया जाता है ? उत्तर-प्रथम उनके वन्दनका निमित्त लेकर चित्तको एकाग्र किया जाता है। तदनन्तर उनके पूजनका निमित्त लेकर चित्तको एकाग्र किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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