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सवि जिन सुखकारी, मोह-मिथ्या निवारी, दुरगति दुःख भारी, शोक-सन्ताप वारी । श्रेणी क्षपक सुधारी, केवलानन्त धारो, नमीए नर-नारी, जेह विश्वोपकारी ॥२॥ समवसरण बेठा, लागे जे जिन मीठा, करे गणप' पइट्ठा, इन्द्र-चन्द्रादि दोठा । द्वादशाङ्गी वरिट्ठा, गूंथतां टाले रिट्ठा, भविजन होय हिट्ठा, देखी पुण्ये गरिट्ठा ।। ३ ।। सुर समकितवन्ता, जेह रिद्ध महन्ता, जेह सज्जन सन्ता, टाळोए मुज चिन्ता। जिनवर सेवन्ता, विघ्न वारे दूरन्ता, जिन उत्तम थुणन्ता, पद्मने सुख दिन्ता ॥ ४ ।।
(२) श्रीशान्तिनाथकी स्तुति वन्दो जिन शान्ति, जास सोवन्न-कान्ति, टाले भव-भ्रान्ति, मोह-मिथ्यात्व-शान्ति । द्रव्य-भाव-अरि-पान्ति, तास करतां निकान्ति, धरतां मन खान्ति, शोक-सन्ताप वान्ति ॥१॥ दोय जिनवर नीला, दोय रक्त रंगोला, दोय धोला सुशीला, काढता कर्म-कीला । न करे कोई हीला, दोय श्याम सलीला, सोल स्वामीजी पीला, आपजो मोक्ष-लीला ।। २ ।। जिनवरनी वाणी, मोह-वल्ली-कृपाणी, सूत्रे देवाणी, साधुने योग्य जाणी।
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