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दीवालीका स्तवन मारे दोवाली थई आज, प्रभुमुख जोवाने, सर्यां सर्यां रे सेवकना काज, भवदुःख खोवाने । महावीरस्वामी मुगते पहोंच्या, गौतम केवलज्ञान रे ! धन्य अमावास्या धन्य दीवाली, महावीर प्रभु निरवाण
जिनमुख जोवाने ॥१॥ चारित्र पाली निरमलु रे, टाल्यां विषम-कषाय रे ! । एवा मुनिने वन्दीए जे, उतारे भवपार-जिन ॥२॥ बाकुल वहोर्या वीरजिने, तारी चन्दनबाला रे !। केवल लई प्रभु मुगते पहोंच्या, पाम्या भवनो पार-जिन० ॥३॥ एवा मुनिने वन्दीए जे, पंचज्ञानने धरता रे!। समवसरण दई देशना प्रभु, तार्या नरने नार-जिन० ॥ ४ ॥ चोवीशमा जिनेश्वरूरे, मुक्तितमा दातार रे!। कर जोडी कवि एम भणे प्रभु! दुनिया फेरो टाल-जिन० ॥५॥
(१)
स्तुतियाँ
श्रीआदिजिनकी स्तुति आदि-जिनवर राया, जास सोवन्न-काया, मरुदेवी माया, धोरी-लंछन पाया। जगस्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया, केवलसिरि-राया, मोक्षनगरे सिधाया ॥१॥
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