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________________ ५४३ कुछ नहीं बोलकर मौन रहते हैं और कुछ लोग 'यथाशक्ति' कहकर उस को अंशतः स्वीकार करते हैं । पापोंका प्रायश्चित करनेके लिये इस तपकी योजना है, अतः वह अवश्य करना चाहिये। ६. फिर प्रत्येक खामणासे सबको खमाया जाता है और उसके पूर्व और पश्चात् विनयके लिये गुरुको द्वादशावर्त्त-वन्दन किया जाता है। ७. से १० फिर 'पक्खीसुत्त' बोलकर श्रुताराधनके उल्लासपूर्वक 'सुयदेवया' थुई कही जाती है। और 'सावग-पडिक्कमण' सुत्त कहकर बाहर लोगस्सका काउस्सग्ग किया जाता है, वह अतिचारोंकी विशेष शुद्धिके लिये जानना। ११. फिर 'इच्छा० अन्भुढिओ हं समत्त ( समाप्त )-खामणेणं अभितर-पक्खियं खामेउं ?' आदि शब्दोंसे खमाया जाता है, वह काउस्सग्ग करते समय शुभ एकाग्रभावसे कोई अपराध याद आये हो तो उनको खमानेके लिये जानना । अथवा यहाँ पाक्षिक प्रतिक्रमणको समाप्ति होती है, अतः पहले क्षमापनके बाद कुछ अप्रीतिकारी हुआ हो, अथवा अशुद्ध क्रिया हुई हो तो उसके क्षमापनके लिये जानना! १२. फिर 'सावग-पडिक्कमण' सुत्तसे दूसरी विधि देवसिक प्रतिक्रमणकी विधिके अनुसार करनी है, अतः उसके हेतु तदनुसार समझने चाहिए। यहाँ श्रुतदेवताके कायोत्सर्गके स्थानपर भुवनदेवताका कायोत्सर्ग किया जाता है, उसका हेतु यह है कि क्षेत्रदेवताकी निरन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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