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________________ सावओ - श्रावक । हs - होता है । - जिस कारण से । जम्हा - 1 एएण कारणेणं - इस कारणसे, इसलिये | अर्थ-सङ्कलना ३९ बहुसो - अनेक बार | सामाइयं - सामायिक | कुज्जा - करना चाहिये । विधि - निश्चित पद्धति | शेष स्पष्ट है । सामायिक - व्रतधारी जहाँतक और जितनी बार मनमें नियम रखकर सामायिक करता है, वहाँतक और उतनी बार वह अशुभकर्मका नाश करता है ॥ १ ॥ सामायिक करनेपर तो श्रावक साधु जैसा होता है; इसलिये उसे सामायिक अनेक बार करना चाहिये ॥ २ ॥ शेषका अर्थ स्पष्ट है | सूत्र-परिचय इस सूत्रद्वारा सामायिक पूर्ण की जाती है और शेषका अर्थ स्पष्ट है । आगे भी सामायिक करनेकी भावना हो, इसलिये इसमें सामायिकके लाभ प्रदर्शित किये गये हैं । साथ ही सामायिक ३२ दोषोंसे रहित होकर करनी चाहिये, यह बात भी इसमें बतलाई है । सामायिक ( २ ) Jain Education International प्रश्न - सामायिकसे क्या लाभ होता है ? उत्तर - सामायिकसे अशुभ कर्मका नाश होता है । प्रश्न - दूसरा लाभ क्या होता है ? उत्तर -- सामायिक से दूसरा लाभ यह होता है कि साधुके समान पवित्र जीवन बिताया जा सकता है, अर्थात् चारित्रमें सुधार होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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