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५३५ हाथ चरवलेपर अथवा भूमिपर रखकर 'अड्ढाइज्जेसु' सूत्र बोलते हैं । वह सब पूर्णाहुतिमें देव-गुरुकी वन्दना करनेके लिये समझना।
११. फिर प्रायश्चित्त-विशुद्धिके निमित्त काउस्सग्ग किया जाता है। अतः उसका हेतु स्पष्ट है। काउस्सग्गके बाद बोला जानेबाला लोगस्सका पाठ मङ्गलरूप है।
१२. बादमें सज्झायका आदेश माँगकर सज्झाय ( स्वाध्याय ) बोली जाती है। उसके सम्बन्ध में शास्त्रकारोंने कहा है कि- . "बारसविहंमि वि तवे, सभितर-बाहिरे कुसल-दिवे । नवि अस्थि नवि अ होही, सज्झाय-समं तवोकम्मं ॥"
सर्वज्ञ-कथित बारह प्रकारके 'बाह्य और अम्यन्तर तपोंके. विषयमें स्वाध्याय समान दूसरा तप-कर्म नहीं है । [ न था, ] और होगा भी नहीं।"
१३. सज्झायके बाद दुःख-क्षय तथा कर्मक्षयके निमित्त कायोत्सर्ग किया जाता है, अतः उसका हेतु स्पष्ट है। इस काउस्सग्गमें 'शान्ति-स्तव' का पाठ एक व्याक्त बोलता है और अन्य सुनते हैं, उसमें कितना गूढ रहस्य स्थित है, वह सूत्र-विवरणके प्रसङ्गपर हमने विस्तारसे बतलाया है।
१४. फिर ‘सामायिक पारनेकी विधि प्रारम्भ होती है, उसमें लोगस्सका पाठ बोलने के बाद 'चउक्कसाय' आदि सूत्र बोलकर चैत्यवन्दन किया जाता है। श्रावकको एक अहोरात्रमें सात चैत्यवन्दन
१. इसके बादकी बिधि 'प्रतिक्रमण-गर्भ-हेतु' में नहीं है।
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