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५२९ चरणस्पर्श करते हों ऐसी भावना रखी जाती है तथा पाप भारसे नीचा झुकता हूँ, ऐसा भी चिन्तन किया जाता है। इस सूत्रका अर्थ यह है कि 'दिनके अन्तर्गत मनको दुष्ट प्रवृत्तिसे, वाणीकी दुष्ट प्रवृत्तिसे तथा कायाकी दुष्ट प्रवृत्तिसे जिन अतिचारोंका सेवन हुआ हो, उन सबका मेरा पाप मिथ्या हो।' सारे प्रतिक्रमण का यही हेतु है। प्रतिक्रमण में ये सब वस्तुएँ विस्तारसे कही जाती हैं। अतः इसको बीजक माना जाता है। यह स्मरण रखना चाहिये कि भगवन्तके दर्शनमें बीजकके उपन्याससे सर्व अर्थकी सामान्य-विशेषरूपता प्राप्त होती है।
अब सारी क्रियाएं विरतावस्थामें आनेसे शुद्ध होती हैं इसलिये प्रतिक्रमणकी क्रिया करनेसे पूर्व आवश्यकके रूपमें यहाँ 'सामाइयसुत्त' अर्थात् 'करेमि भन्ते !' सूत्र बोला जाता है। ___ ५. फिर 'करेमि भन्ते !' सूत्र बोलकर आगे गुरुके समक्ष अतिचारोंका आलोचन ( निवेदन ) करनेका है, उसकी पहली तैयारीके रूपमें 'अइआरालोअण-सुत्त' 'तस्स-उत्तरो' सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्र बोलकर 'अइआर-वियारण' की गाथाओंका काउस्सग्ग किया जाता है।
प्रतिक्रमणका मुख्य हेतु पञ्चाचारको विशुद्धि है, अतः इस काउस्सग्गमें दिवस-सम्बन्धी पाँचों आचारों में लगे हुए अतिचारोंका सूक्ष्मतासे विचार कर मनमें धारणा की जाती है।'
१. साधु इस स्थानपर नीचेकी गाथाद्वारा अतिचारोंका चिन्तन करते हैं:
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