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________________ 'सामायिककी साधना' करनेके लिए ऊपर कहे अनुसार प्रतिज्ञा ग्रहण करने के बाद स्थिर आसनपर बैठने के लिए आज्ञा मांगी जाती है। तदर्थ खमासमण प्रणिपातको क्रिया करके 'इच्छा० सन्दिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ?' अर्थात् हे भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो मैं बैठनेकी अनुमति माँगता हूँ, इस प्रकार कहा जाता है । गुरु हों तो वे 'संदिसह' कहते हैं, नहीं तो उनकी अनुमति मिली हुई मानकर 'इच्छं' कहकर पुन: खमासमणद्वारा 'इच्छा० संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाउं ?' अर्थात् हे भगवन् ! आपकी इच्छा हो तो मैं बैठकपर स्थिर होऊँ ? ऐसा आदेश माँगा जाता है। गुरु हों तो वे 'ठाएह' कहते हैं। नहीं तो उनकी अनुमति मिलो हुई मानकर 'इच्छ” कहने में आता है। 'इच्छ' पदका व्यवहार सर्वत्र इस प्रकार समझ लेना चाहिये। अब 'सामायिक' में स्वाध्यायादि क्रिया मुख्य होनेसे उसका आदेश माँगने के लिये खमासमण प्रणिपातकी क्रियापूर्वक 'इच्छा० संदिसह भगवन् ! सज्झाय ( स्वाध्याय ) संदिसाहुं ?' इस प्रकार बोला जाता है। गुरु हों तो वे 'संदिसह' कहते हैं और आज्ञाका स्वीकार ‘इच्छ' पदद्वारा करके पुनः खमासमण प्रणिपातकी क्रियापूर्वक 'इच्छा० संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूँ ?' इन शब्दोंसे 'स्वाध्याय'का निश्चित आदेश लिया जाता है। यहाँ स्वाध्याय शब्दसे सूत्रकी वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा तथा मन्त्रजप और ध्यान अभिप्रेत है। गुरु इस प्रकारके स्वाध्यायका आदेश देते हैं, अतः 'इच्छ" कहकर मङ्गलरूप तीन नमस्कार गिनकर 'सामायि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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