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इच्छा० पक्खि-मुहपत्ती पडिलेहुँ ?' ऐसा कहकर पाक्षिक प्रतिक्रमणको मुहपत्ती पडिलेहनेका आदेश माँगना और वह मिलने पर 'इच्छं' कहकर मुहपत्ती पडिलेहनी । फिर द्वादशावर्त्त-वन्दन करना। इसके बाद 'इच्छा० अब्भुट्टिओ हं संबुद्धा खामणेणं अभितर पक्खिअं खामेउं ?' ऐसे कहना० गुरु कहें-'खामेह' तब 'इच्छं खामेमि पक्खिअं, एक ( अंतो ) पक्खस्स पन्नरस राइआणं, पन्नरस दिवसाणं जं किंचि अपत्तिअं.' आदि पाठ बोलना।
(३) फिर 'इच्छा० पक्खि आलोऊ ?' कहकर पाक्षिक आलोचनाका आदेश माँगना और गुरु कहें-'आलोएह' तब 'इच्छं' कह पक्खी ( पाक्षिक ) अतिचार बोलना । ( मण्डली में एक बोले
और अन्य उसका चिन्तन करें । अतिचार न आता हो तो 'सावगपडिक्कमण-सुत्त' बोलना।)
(४) फिर 'सव्वस्स वि पक्खिअ दुच्चितिअ, दुब्भासिअ, दुच्चिटिअ इच्छाकारेण संदिसह भगवान् ! इच्छं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' ऐसा कहना।
(५) बादमें 'इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी पक्खि-तप प्रसाद करनाजी' ऐसा कहना। तब गुरु अथवा कोई बड़ा व्यक्ति इस प्रकार कहे :-'पक्खी लेखे एक उपवास, दो आयंबिल, तीन निव्वी, चार एकाशन, आठ बियाशन, या दो हजार सज्झाय, यथाशक्ति तप करके पहुँचाना।' इस समय तप पूर्ण किया तो 'पइटिओ' कहना और यदि ऐसा तप निकटमें ही कर देना हो तो 'तह त्ति'
कहना।
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