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देवसिओ०' सूत्र 'तस्स उत्तरो' सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्र बोलकर दो लोगस्सका अथवा आठ नमस्कारका काउस्सग्ग करना।
बादमें काउस्सग्ग पूर्णकर 'लोगस्स' तथा 'सव्वलोए अरिहंतचेइआणं का पाठ बोलना और एक लोगस्स अथवा चार नमस्कारका काउस्सग्ग करना।
फिर वह काउस्सग्ग पूर्णकर 'पुक्खरवर-दीवड्ढे' सूत्र बोलकर 'सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदण०' कहकर, एक लोगस्स अथवा चार नमस्कारका काउस्सग्ग करना।
यह काउस्सग्ग पूर्ण करके 'सिद्धाणं बुद्धाणं' सूत्र बोलना।
'फिर 'सुअदेवयाए करेमि काउस्सग्गं' तथा 'तस्स उत्तरी' व 'अन्नत्थ०' सूत्र बोलकर एक नमस्कारका कायोत्सर्ग करना और वह पूरा करके 'नमोऽर्हत्०' कहकर पुरुषको 'सुअदेवया' को थोय ( स्तुति ) बोलनी और स्त्रीको 'कमलदल०' स्तुति बोलनी चाहिये।
तदनन्तर 'खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं' तथा 'काउस्सग्ग' सुत्त कहकर एक नमस्कारका काउस्सग्ग पूर्ण करके, 'नमोर्हत्०' कहकर, पुरुषको 'जीसे खित्ते साहू की थोय बोलनी और स्त्रीको यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य'की थोय बोलनी चाहिये।
(९) छट्ठा आवश्यक ( प्रत्याख्यान ) इसके बाद नवकार गिनकर, बैठकर मुहपत्ती पडिलेहनी, तथा द्वादशावर्त-वन्दन करना और अवग्रहमें खड़े-खड़े ही 'सामायिक, चउवीसत्थओ, वंदण, पडिक्कमण, काउस्सग्ग, पच्चक्खाण किया है', ऐसा बोलना।
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