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________________ ४८३ क्रमणकी स्थापनाके सम्बन्धमें आज्ञा माँगनी और गुरु 'ठाएह' ऐसा कहें, तब ‘इच्छं' कहकर दाहिना हाथ चरवलेपर अथवा कटासनपर रखकर तथा मस्तक नीचा झुकाकर 'सव्वस्स वि' सूत्र बोलना। ( ५ ) प्रथम और द्वितीय आवश्यक ( सामायिक और चतुर्विशति-स्तव ) __फिरे खड़े होकर 'करेमि भंते' सूत्र तथा 'अइआरालोअण' सूत्र अर्थात् ‘इच्छामि ठामि काउस्सग्गं, जो मे देवसिओ' सूत्र 'तस्स उत्तरी' सूत्र तथा 'अन्नत्थं' सत्र बोलकर 'अइयार-वियारण-गाहा' ( अतिचार विचार करनेकी गाथाओं) का काउस्सग्ग करना। यहाँ ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, तथा वीर्याचार में लगे हुए अतिचारोंका चिन्तन करके वे अतिचार याद रखने चाहिए। ये गाथाएं नहीं आती हों तो आठ नमस्कारका काउस्सग्ग करना चाहिए। यह काउस्सग्ग पूर्ण करके 'लोगस्स' सूत्र प्रकट रीतिसे बोलना। (६ ) तीसरा आवश्यक ( गुरु-वन्दन ) ___ इसके पश्चात् बैठकर तीसरे आवश्यककी मुहपत्ती पडिलेहना और द्वादशावर्त्त-वन्दन करना। उसमें दूसरी बार सूत्र बोलकर अवग्रहसे बाहर नहीं निकलना। . (७) चौथा आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) फिर 'इच्छा देवसिअं आलोउं' कहकर देवसिक अतिचारोंकी आलोचना करनेकी अनुज्ञा माँगनी । गुरु कहें-'आलोएह' तब 'इच्छं' कहकर 'अइआरालोअण' -सुत्तका पाठ बोलना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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