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________________ नवविह-नवविध, नव प्रकारकी। बंभचेर-गुत्ति-ब्रह्मचर्यकी गुप्ति, ब्रह्मचर्य पालन सम्बन्धी नियम । धरो-धारण करनेवाला। इसके बाद शुद्ध हिन्दीमें अर्थसङ्कलना दी गयी है और अन्तमें सूत्रपरिचय दिया गया है। जिसमें प्रस्तुत-सूत्र कब किस हेतुसे बोला जाता है इसका निर्देश किया गया है और साथ ही तत्सम्बन्धी जो सम्प्रदाय अथवा किंवदन्ती प्रचलित है, उसका वहाँ वैसे ही स्वरूपमें निदर्शन करा दिया है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थलोंपर सूत्र-परिचयके बाद सरलभाषामें संक्षिप्त प्रश्नोत्तरी दी गयी है, जो सूत्रका विषय स्पष्ट करने में अत्यन्त उपयोगी है। प्रस्तुत पुस्तकमें पाठकोंकी अनुकूलताके लिए गुजराती अतिचारके उपरान्त हिन्दी अतिचार तथा नवस्मरण भी दिये गये हैं जो प्रथमावृत्तिमें नहीं थे। तथा सामायिक लेनेको तथा पूर्ण करनेकी विधि, चैत्यवन्दनकी विधि, दैवसिक-रात्रिक-पाक्षिक-चातुर्मासिक-सांवत्सरिकप्रतिक्रमण विधि, पोषध-विधि, छींक आये तो करनेको विधि तथा पच्चक्खाण पारनेकी विधि दी गयी हैं। और उनके हेतु भी विस्तारपूर्वक दिये हैं, जिससे पाठक उन-उन विधियोंका रहस्य समझ सके और उसके अनुशीलनका आनन्द भी प्राप्त कर सके । साथ ही उक्त पुस्तकमें मङ्गलभावना, प्रभुके सम्मुख बोलनेके दोहे, शत्रुजयको प्रणिपात करते समय बोलनेके दोहे, नवाङ्गपूजाके दोहे, अष्टप्रकारी पूजाके दोहे, ४ प्रभुस्तुति, १६ चैत्यवन्दन, २५ स्तवन, १५ स्तुतियाँ, ५ सज्झाय, ६ छन्द तथा पद, २ आरती, २ मङ्गलदीपक, छूटे बोल तथा श्रावकके प्रतिदिन धारने योग्य चौदह नियम एवं सत्रह प्रमार्जना दी गयी है। यह हिन्दी अनुवाद पाठकोंके करकमलोंमें समर्पित करते हुए हम आशा करते हैं कि सूत्रों का शुद्ध पाठ कण्ठस्थ किया जाय तथा उनका वास्तविक अर्थ समझा जाय; इस दृष्टिसे सुज्ञ श्रावक-श्राविका-समुदाय इसी पुस्तकका उपयोग करनेकी भावना रखेंगे तथा इसका उचित सत्कार करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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