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४६२ देखी । ऋद्धिमान् की ऋद्धि देख ईर्षा की । मिट्टी, नमक, धान, बिनोले बिना कारण मसले । हरी वनस्पति बूंदी। शस्त्रादि बनवाये । रागद्वेष के वश से एक का भला चाहा एक का बुरा चाहा । मृत्यु की वांछा की। मैना. तोते, कबूतर, बटेर, चकोर आदि पक्षियों को पिंजरे में डाला । इत्यादि आठवें अनर्थ-दंड-विरमण-ब्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्षदिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥ . नवमें सामायिक व्रत के पांच अतिचार-"तिविहे दुप्पणिहाणे०" सामायिक में संकल्प विकल्प किया। चित्त स्थिर न रखा । सावध वचन बोला । प्रमार्जन किये विना शरीर हिलाया, इधर उधर किया । शक्ति होने पर भी सामायिक न किया । सामायिक में खुले मुंह बोला । नींद ली । विकथा की । घर संबंधी विचार किया। दीपक या बिजली का प्रकाश शरीर पर पड़ा । सचित्त वस्तु का संघट्टन हुआ। स्त्री तियच आदि का निरंतर परस्पर संघट्टन हुआ । मुहपत्ति संघट्टी । सामायिक अधूरा पारा, बिना पारे उठा। इत्यादि नवमें सामायिक व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
दसवें देशावकाशिक व्रत के पांच अतिचार-"आणवणे
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