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४६१ . भोगोपभोग व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं।
आठवें अनर्थदंड के पांच अतिचार-"कंदप्पे कुक्कुइए." कंदर्पः-कामाधीन होकर नट, विट वेश्या आदि से हास्य खेल क्रीडा कुतूहल किया। स्त्री पुरुष के हाव-भाव, रूप, शृंगार संबंधी वार्ता की। विषय-रस-पोषक कथा की, स्त्रीकथा, देश-कथा, भक्त-कथा, राज-कथा, ये चार विकथाएँ की । पराई भांजगढ़ की। किसी की चुगलखोरी की । आर्त्तध्यान, रौद्र-ध्यान ध्याया। खांडा, अटार, कशि, कुल्हाड़ी, रथ, ऊखल,मूसल, अग्नि, चक्की आदि वस्तुएँ दाक्षिण्यता-वश किसी को मांगी दीं। पापोपदेश दिया । अष्टमी चतुर्दशी के दिन दलने-पीसने आदि का नियम तोड़ा। मूर्खता से असंबद्ध वाक्य बोला । प्रमादाचरण सेवन किया । घी, तैल, दूध, दही, गुड़, छाछ आदि का भाजन खुला रखा, उसमें जीवादि का नाश हुआ । बासी मक्खन रखा और तपाया। नहाते-धोते दातुन करते जीव आकुलित मोरी में पानी डाला। झूले में झूला । जुआ खेला । नाटक आदि देखा । ढोर (डंगर) खरीदवाये । कर्कश बचन कहा । किचकिची ली। ताडना-तर्जना की । मत्सरता धारण की । शाप दिया । भैंसा, साँढ, मेंढा, मुरगा, कुत्ते, आदि लड़वाये या इनकी लड़ाई
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